रामदास गौड़ और मनु शर्मा फैजाबाद जनपद की विभुूषित ............
लेखको का सारा जीवन खोज में लगा होता है। वह अपनी परवाह न करते हुए रात-दिन समाज देश राष्ट्र को कुछ अच्छे नेक सर्वमान्य शास्त्र सम्मत साहित्य को बर्तन मज्जन करने वाली महरिन की भाति माजकर निखारकर निर्मल रूपमें पिरोने का कार्य करता है वह उसी प्रकार इसेपाठक को देने का प्रयत्न करता है जिस प्रकार एक कुशल हलवई स्वादिष्ट नजन को अपने ग्राहको को देना चाहता है। जिसे खाकर बाजारू ग्राहक पुन: उस स्वादि्ट व्यन्जन को खाने के लिए लालायित रहते है।
हिन्दी में विજ્ઞાन लेखन के पितामह रामदास गौड़ का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में नवम्बर21़1881ई0 को हुआ,जहां उनके
पिता ललिता प्रसाद पहले तो चर्च मिशन हाईस्कूल में अध्यापक थे। लेकिन बाद में नौकरी छोड़ कर वकालत करने लगे। उनका पैतृक गाँव उमरी भवानी पुर(तत्कालीन फैजाबाद ,वर्तमान में अम्बेडकर नगर)मेरे जिले में अवस्थित है। जो हमारे घर से कुछ किलोमीटर पर वर्तमान में वह गाँव आज भी स्तित्व में है। ललिता प्रसाद जिले के ऐतिहसिक किसान विद्रोह के लिए जाने जाने वाले परगना विड़हर के रहने वाले थे। उनके पितामह गांव के जमिंदार थे,लेकिन 1810 में उन्हें ऎसा वैराग्य हुआ कि सारी जमिंदारी भगवान भरोसे छोड़कर काशीवास करने लगे। इससे पैदा हुई समेस्या के चलते उनके परिवार को भयानक दुर्दिन झेलने पड़े। फिर भी पिता ललिता प्रसाद ने घर पर फारसी,गणित व अंग्रेजी की अनौपचारिक शिક્ષા के बाद रामदास को विभिन्न काँलेजों से विજ્ઞાन की उच्च शिક્ષા दिलायी।1।
अनेक सम्मानो औेर पुरस्कारों से विभुूषित मनु शर्मा ने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लिख है तु कथा आप की मुख्य विधा है।
मनु यनी हनुमनप्रसाद शर्मा का जन्म शरत पूर्णिमा 1928 ई0 को अकबरपुर अम्बेडकर नगर(फैजाबाद जनपद)उत्तर प्रदेश मे हुआ था। ये लेखन जगत में मनु शर्मा नाम से विख्यात रहे। लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास दो सौ कहानियों और अनगिनत कविताओं के प्रणेता ही मनु शर्मा की साहित्य साधना हिन्दी की किसी भी खेमे बन्दी से दूर अपनी ही बनाई हुई पगडंडी पर इस विश्वास के साथ चलती रही कि आज नहीं तो कल नहीं तो परसों, बरसों नहीं तो बरसों बाद में डायनासोर के जीवाश्म की तरह पढ़ा जायेगा।2।
गोपाल व गौरवा(गोरा पજ્ઞી),और गोभिल(सामवेदी गृह्यसूत्र के एक प्रसिद्ध ૠषि रचयिता सा साहित्य को भाँति-भाँति रच-रच कर
समाज को सुन्दर स्वरूप में परोसने का प्रयास साहित्यकार का होता है। आप सोच सकते हैं,यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि पराधीनता की बेड़ियोंं में जकडे भारत में 1913 से 1937 के बीच आचार्य राम दास गौड़ ने विજ્ઞાन के शुष्कतम विषयों को भी प्रीतिकर हिन्दी में लिखने व पाठकों तक पहुचाने की जो मुहिम चलायी,वह उनके संसार को अलविदा कहते ही ठप न पड़ जाती,तो आज आज यह हालत न होती।3।
साहित्यकार सम्पादन करते समय यथासामर्थ्य निष्ठापूर्वक साहित्य के निर्माण में योग दान करता है क्यों कि ग्रंथ का कार्य अस्थायी
नहीं होता अपितु सनातन है। हाँ ક્ષેत्र में काम करने वाले प्राय: सभी विद्वान् ક્ષેत्रीय भाषाओं के विद्वानों की भाषाओं का आधार ग्रहण करते रहते हैं। रामदास जी इलाहाबाद की ऐतिहासिक कायस्थ पाठशाला और म्योर सेंट्रल काँलेज में अध्यापन के बाद 1918 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राच्य विद्या विभाग में रसायन विજ્ઞાन के प्रोफेसर नियुक्त हुए और उन्हें फैकल्टी आफ 'आट्र्स़ साइंस ओरियंटल लर्निग व सीनेट की सदस्यता प्राप्त हुई। लेकिन ईससे पाँच साल पहले ही उन्होंने वर्नाक्यूलर साइंटिफिक लिटरेसी सोसाइटी के रूप में ' विજ્ઞાन परिषद'की स्थापना कर दी थी। इस परिषद में हिन्दी में विજ્ઞાन लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ भी कमी नहीं रख छोड़ी थी।4।अपनी सृजनयात्रा को तो आचार्य रामदास ने किसी भी मोड़ पर थमने नहीं दिया | सितम्बर १२/१९३७ को अंतिम साँस लेने से पहले
वे दो सर्जन से ज्यादा पुस्तकें लिख चुके थे ,जिनमें 'विज्ञान हस्तामलक 'को अपने समय का प्रतिष्ठित मंगलाप्रसाद पुरस्कार प्राप्त
हुआ था |'विज्ञान' नामक पत्रिका में तो वे नियमित रूप से लिखा ही करते थे | परन्तु ऐसा बी नहीं है की उन्होंने सिर्फ वैज्ञानिक विषयों
पर ही लिखा हो उन दिनों उर्दू का प्रभाव था अतएव शुरुआती दिनों`में उन्होंने 'गौड़ हितकारी 'नाम की उर्दू मासिक पत्रिका निकाली
थी और बाद में हिन्दी साहित्य सम्मेलन से प्रकाशित 'हिन्दी भाषा सार ' के पहले भाग का सम्पादन किया तो राष्ट्रीय विद्यालयों के लिए
हिन्दी की सात पाठ्य पुस्तकें भी तैयार करायी थी`| इन पाठ्य पुस्तकों में अंग्रेजो`की दृष्टि से इतनी 'आपत्तिजनक 'सामग्री थी | की १९२४ में इन्हें प्रतिबंधित कर दिया गया और इसके लिए पंडित गोविन्द वल्ल्भ पंत जी को इसके लिए आवाज उठानी पड़ी |६|
सम्मनो और पुरस्कारों स विभूषित मनु शर्मा ने साहित्य की विविध विधाओं में लिखा है परन्तु कथा आप उनकी मुख्य विधा है |तीन प्रश्न ;मरीचिका लछिमन रेखा आदि आप का, प्रसिद्ध सामाजिक कहानियो का संग्रह है | मुसी नवनीत लाल ऑर अन्य कहानियों में सामाजिक विकृतियों तथा विसंगतियों पर कटाच्छ करने वाले तीखे व्यंग है`| द्रोपदी की आत्म कथा आठ भागों में , द्रोनं की
आत्म कथा ;कर्ण की आत्म कथा और गंधारी की आत्म कथा है | 7|
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Sukhmangal Singh
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