"समाज न बांटो"
लोग सभी समझते सांचौ - सांचौ
तर्क युक्त बात समाज में राखो।
छल छदमों में जनता को आंको
घटिया राजनीति में नहीं बांटो ।
ढका आवरण छल कपट का फेको
झूठा राग समाज में ना भाखो ।
धर्म - धर्म को आपस में न बांटो
मन के अंदर अपने जा के जाचो।
ताना मार मर्यादाएं मत खांचो
सुबह शाम अनर्गल बात न बांचो।
हिमालय की चोटी ऊंची न आको
आवाज धीरे, शब्द नहीं भाखो ।
किसी तरह जहां चढ़े बने बांका
गिरकर बंदशब्द न निकले आंका !
ढांचा चढ़ा आकाश बन बांका
सभी समझते लोग सोचो सांचा।
- सुख मंगल सिंह
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