“कविता :सौम्यता–संस्कार–युग बोध”
कविता ,कवि की मनोरम वाणी मेन है देवत्व की प्रतिष्ठा
कविता ,सृष्टि का सौंदर्य और है सम्पूर्ण निष्ठा
अनु-परमाणु –विंदु- सिंधु ,अग्नि –वायु –अन्न –वस्त्र है कविता
मानुष्य है कविता, वृक्ष है कविता,शास्त्र कविता, शस्त्र कविता
छ्ंद-स्वच्छंद है कविता ,यत्र –तत्र –सर्वत्र गंध है कविता
आदिकाल से प्रीति-रीति का ,स्वीकृत अनुवंध है कविता
कविता, समय को समय की पहचान देती है
समय पड़ने पर,कविता मुरदों को भी जान देती है
काव्य-सृष्टि –सर्जक की, उत्कृष्टतम अभिव्यक्ति है कविता
टूटते –विखरते लोगों को,जोड़ने वाली शक्ति है कविता
कवि न मरता है , न किसी को मारता है
कवि,परिवार–समाज–देश-विश्व को तारता है
कविता ,वादों संकीर्ण घेरों को तोड़ देती है
एक अविरल प्रवाह बन,रसमयता से जोड़ देती है
‘कवि हूँ मैं सरयू तट का’ कालजयी–काव्य–परंपरा में शोध हैइसकी एक–एक पंक्ति में, सौम्यता –संस्कार और युगवोध है| -सुखमंगल सिंह
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY