-सुखमंगल सिंह
आ रोहन्तु जनयो योनिमग्रे।(12,2,31)अथर्व0-सुभाषि0
अर्थात स्त्रियाँ यજ્ઞवेदी पर पहले चढ़ें।
किसी भी काल में स्त्रियों का योगदान पुरुषों के सहयोग में न रहा हो हमने अपने अध्यन में नहीं देखा है। स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी महिलाओं का योगदान कम न था। कित्तूर(कर्नाटक0 की रानी चेनम्या सम् 1824 में अपना अदम्य साहस दिखाकर प्रथम वीरांगना में अपना नाम रोशन किया। भारतीय स्वराज्य लीग(होम रूल लीग) की स्थापना वाराणसी में, लंदन में जन्मी एनीबेसेन्ट ने किया। इसका मतलब स्वशासन स्थापित करना था। उसमें भारत और इंगलैड का सम्बन्ध विच्छेदन था। मतलब भारत माता अपने घर की पूर्ण स्वामिनी बन जाएँ। इसका तात्पर्य यह था कि अंग्रेज भारत छोड़ कर चले जांय। जिससे भारत में विभिन्न जातियों धर्मों के मत मतांतरों में भेद न हो। सन् 1916 में एनीबेसेन्ट जी नें स्तन्त्रता का विगुल होम रूल के माध्यम बजाया और अंग्रेजों ने घबराकर उन्हें सन् 1917 में गिरफ्तार कर लिया। होम रूल के कार्यकर्ताओं के ऊपर दमन करना सुरू कर दिया। जब कि जबरदस्त बिरोध को देखते हुए डेढ़माह में ही छोड़ दिया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में महिला महाविद्यालय की स्थापना के पृष्ठिभूमि में एनीवेसेन्ट जी ही थीं। इस महाविद्यालय ने सरोजनी वाषॉणेय,दमयंती नारंग, कर्णवती देवी,सरोजनीसेन, मनोरमा सैटिन, कपिल वात्सायन,गुंती सेवी, कमला देवी,ऊषा मालवीय,एवं लीला मिश्रा सरीखी सैकड़ों स्वतन्त्रता की वीतांगना महिलाओं के रूप में जन्म दिया। जिन्होने क्रांतिकारियों को संदेश पहुचाने में भरपूर सहयोग किया। सूचनाओं के आदान-प्रदान करने का कार्य बखूबी निभया था।
सन् 1857 में सुदूर तक फैली वीरांगनाओं का योगदान भारत भूमि पर जब तक मानव रहेगा, वह उनके याद को भूल नहीं सकता।
ऊदा देवी;-जनरल रोज ने लिखा-"यहां एक औरत सोई हुई हैजो विद्रोहियों में एक मात्र मर्द थी"। वीरांगना ऊदा देवी पीपल के घने पत्तों मे छुप कर बत्तीस अंग्रेज सैनिकों को मारा था। ऊदा देवी लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हुईं।
अजीजन बाई:-कवि सुदर्शन चक्र ने लिखा-" तबला बोला बोली मृदंग, बोले सितार के तार-तार महफिल में कितने लोग मरे। कूुछ मिला नहीं इसका शुमार रंग गई रंग से रंगभूमि हाथों में राज फिरंगी के इसलिए भैरवी गाते थे स्वर आज अजीजन कें"। अग्रेजों को मारकर अपनी कीमती जान गँवाकर वह वेस्यालय से निकल कर वीरांगनाओं में अपना नाम जीवंत कर गईं। कानपुर की बाई जी ने क्रांति कारीयोजना के लिए महिलाओं कीपुरुष भेष में टोलियां बनायी थी। यहीं से मलिका मस्तानीबाई खुफिया जानकारी जुटाती थीं।
अवन्तीवाई:-यह मध्यप्रदेश के रायगढ़ की रानी थीं। जिन्होंने अग्रेजों के युद्ध में छक्के छुड़ा किया था। उन्होंने मृत्यु कुडूल किया आत्मसमर्पण की जगह पर। इसीक्रम में तेजोपुर की रानी,जैतपुर की रानी दतिया के साथ लेकर युद्ध किया।
लज्जो:- मातादीन की पत्नी थीं जो अंग्रेजों के यहां काम करते हुए जानकारी की कि गाय के चर्वी से निर्मित कारतूस का, जिसे मातादीन ने मंगल पाण्डेय को बताया। फिर सैनिक विद्रोह हो गया।
बेगम हजरत महल;- लखनऊ अछूता न था। बेगम हजरत महल ने अपने कम उम्र वालक को राज सत्ता सौपकर स्वयं युद्ध किया जिसमें अवध की जनता ने भरपूर साथ दिया। लखनऊ का आलम बाग युद्ध का केन्द्र रहा। कहा जाता है पराजय के उपरांत ग्रामीण इलाकों में रह कर क्रान्ति का बिगुल बजाया।
वाराणसी में मैदागिन स्थित कांग्रेश कार्यालय को अंग्रेजों से मुक्त कराने में वाराणसी विश्व विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने अदम्य साहस दिखाया। वि0 विद्यालय कीछात्रा दमयन्ती को लक्सा पोष्ट आफिस लूट में गोली खानी खानी पड़ी। फिर भी लोगों के हफसले बुलन्द रहे ।
लेखक अमृत लाल नागर ही मराठी पुस्तक माझा प्रवास का हिंदी रूपान्तर आखों देखा गदर पठनीय है।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में लीला शर्मा,राजेन्द्र कुमारी वाजपेयी,सुचिता कृपलानी के बलिदान की भावना जेहन में लेकर श्री बी0एम0 शुक्ल1942 केबी0 एच0 यू0 के छात्र एवं पूर्व कुलपति गोरखपुर विश्व विद्यालय ने वयां किया है। अगस्त माह में उनदिनों गाँव-गाँव प्रभात फै फेरी होती थी । हरदत्तपुर रेलवे स्टेशन जो इलाहाबाद मार्ग पर अवस्थित है वहांगाँव की महिलाओं ने अद्भुत साहस दिखाया। क्रांतिकारी जनता स्टेशन फुकने का प्रयास कर रहे थे कि लोहता कैम्प की अंग्रेजों की सेना वहां आ धमकी।भागम भाग मच गया,लोग चोटिल भी हुए। छात्रों को गांव ही तरफ भागते देख गांव के लोग डर गये तो क्रान्तिकारी बच्चे घरों के पिछवाड़े रहकर रात्रि गुजारी। सुहृद लोगों ने हल्दी चूना लगाकर घाव पर मरहम लगाया।स्वतन्त्रता आंदोलन में महिलाओ का योगदान
आ रोहन्तु जनयो योनिमग्रे।(12,2,31)अथर्व0-सुभाषि0
अर्थात स्त्रियाँ यજ્ઞवेदी पर पहले चढ़ें।
किसी भी काल में स्त्रियों का योगदान पुरुषों के सहयोग में न रहा हो हमने अपने अध्यन में नहीं देखा है। स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी महिलाओं का योगदान कम न था। कित्तूर(कर्नाटक0 की रानी चेनम्या सम् 1824 में अपना अदम्य साहस दिखाकर प्रथम वीरांगना में अपना नाम रोशन किया। भारतीय स्वराज्य लीग(होम रूल लीग) की स्थापना वाराणसी में, लंदन में जन्मी एनीबेसेन्ट ने किया। इसका मतलब स्वशासन स्थापित करना था। उसमें भारत और इंगलैड का सम्बन्ध विच्छेदन था। मतलब भारत माता अपने घर की पूर्ण स्वामिनी बन जाएँ। इसका तात्पर्य यह था कि अंग्रेज भारत छोड़ कर चले जांय। जिससे भारत में विभिन्न जातियों धर्मों के मत मतांतरों में भेद न हो। सन् 1916 में एनीबेसेन्ट जी नें स्तन्त्रता का विगुल होम रूल के माध्यम बजाया और अंग्रेजों ने घबराकर उन्हें सन् 1917 में गिरफ्तार कर लिया। होम रूल के कार्यकर्ताओं के ऊपर दमन करना सुरू कर दिया। जब कि जबरदस्त बिरोध को देखते हुए डेढ़माह में ही छोड़ दिया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में महिला महाविद्यालय की स्थापना के पृष्ठिभूमि में एनीवेसेन्ट जी ही थीं। इस महाविद्यालय ने सरोजनी वाषॉणेय,दमयंती नारंग, कर्णवती देवी,सरोजनीसेन, मनोरमा सैटिन, कपिल वात्सायन,गुंती सेवी, कमला देवी,ऊषा मालवीय,एवं लीला मिश्रा सरीखी सैकड़ों स्वतन्त्रता की वीतांगना महिलाओं के रूप में जन्म दिया। जिन्होने क्रांतिकारियों को संदेश पहुचाने में भरपूर सहयोग किया। सूचनाओं के आदान-प्रदान करने का कार्य बखूबी निभया था।
सन् 1857 में सुदूर तक फैली वीरांगनाओं का योगदान भारत भूमि पर जब तक मानव रहेगा, वह उनके याद को भूल नहीं सकता।
ऊदा देवी;-जनरल रोज ने लिखा-"यहां एक औरत सोई हुई हैजो विद्रोहियों में एक मात्र मर्द थी"। वीरांगना ऊदा देवी पीपल के घने पत्तों मे छुप कर बत्तीस अंग्रेज सैनिकों को मारा था। ऊदा देवी लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हुईं।
अजीजन बाई:-कवि सुदर्शन चक्र ने लिखा-" तबला बोला बोली मृदंग, बोले सितार के तार-तार महफिल में कितने लोग मरे। कूुछ मिला नहीं इसका शुमार रंग गई रंग से रंगभूमि हाथों में राज फिरंगी के इसलिए भैरवी गाते थे स्वर आज अजीजन कें"। अग्रेजों को मारकर अपनी कीमती जान गँवाकर वह वेस्यालय से निकल कर वीरांगनाओं में अपना नाम जीवंत कर गईं। कानपुर की बाई जी ने क्रांति कारीयोजना के लिए महिलाओं कीपुरुष भेष में टोलियां बनायी थी। यहीं से मलिका मस्तानीबाई खुफिया जानकारी जुटाती थीं।
अवन्तीवाई:-यह मध्यप्रदेश के रायगढ़ की रानी थीं। जिन्होंने अग्रेजों के युद्ध में छक्के छुड़ा किया था। उन्होंने मृत्यु कुडूल किया आत्मसमर्पण की जगह पर। इसीक्रम में तेजोपुर की रानी,जैतपुर की रानी दतिया के साथ लेकर युद्ध किया।
लज्जो:- मातादीन की पत्नी थीं जो अंग्रेजों के यहां काम करते हुए जानकारी की कि गाय के चर्वी से निर्मित कारतूस का, जिसे मातादीन ने मंगल पाण्डेय को बताया। फिर सैनिक विद्रोह हो गया।
बेगम हजरत महल;- लखनऊ अछूता न था। बेगम हजरत महल ने अपने कम उम्र वालक को राज सत्ता सौपकर स्वयं युद्ध किया जिसमें अवध की जनता ने भरपूर साथ दिया। लखनऊ का आलम बाग युद्ध का केन्द्र रहा। कहा जाता है पराजय के उपरांत ग्रामीण इलाकों में रह कर क्रान्ति का बिगुल बजाया।
वाराणसी में मैदागिन स्थित कांग्रेश कार्यालय को अंग्रेजों से मुक्त कराने में वाराणसी विश्व विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने अदम्य साहस दिखाया। वि0 विद्यालय कीछात्रा दमयन्ती को लक्सा पोष्ट आफिस लूट में गोली खानी खानी पड़ी। फिर भी लोगों के हफसले बुलन्द रहे ।
लेखक अमृत लाल नागर ही मराठी पुस्तक माझा प्रवास का हिंदी रूपान्तर आखों देखा गदर पठनीय है। स्वतन्त्रता आन्दोलन में लीला शर्मा,राजेन्द्र कुमारी वाजपेयी,सुचिता कृपलानी के बलिदान की भावना जेहन में लेकर श्री बी0एम0 शुक्ल1942 केबी0 एच0 यू0 के छात्र एवं पूर्व कुलपति गोरखपुर विश्व विद्यालय ने वयां किया है। अगस्त माह में उनदिनों गाँव-गाँव प्रभात फै फेरी होती थी । हरदत्तपुर रेलवे स्टेशन जो इलाहाबाद मार्ग पर अवस्थित है वहांगाँव की महिलाओं ने अद्भुत साहस दिखाया। क्रांतिकारी जनता स्टेशन फुकने का प्रयास कर रहे थे कि लोहता कैम्प की अंग्रेजों की सेना वहां आ धमकी।भागम भाग मच गया,लोग चोटिल भी हुए। छात्रों को गांव ही तरफ भागते देख गांव के लोग डर गये तो क्रान्तिकारी बच्चे घरों के पिछवाड़े रहकर रात्रि गुजारी। सुहृद लोगों ने हल्दी चूना लगाकर घाव पर मरहम लगाया।
देश के क्रांतिकारी महायुद्ध में लज्जो देवी, शन्नो देवी, शहीद बैकुन्ठ की पत्नी राधिका देवी, सुशीला दीदी एवं रानी गादेन्ल्यू भारत छोड़ो आन्दोलन में शहीद हूई। फुलेना प्रसाद की पत्नी तारा रानी श्रीवास्तव,कानपुर के रामचन्द्र मुसद्दी की पत्नी श्री देवी मुसद्दी, झांसी बम काँड के लક્ષ્मी कान्त शुक्ल की पत्नी बसुमति शुक्ल, लखनऊ मे1942 में फासी पाने वाले क्रांतिकारी राजनारायण मिश्र की पत्नी, आजाद हिोंद फौज की वीरांगना लક્ષ્मी बाई, लક્ષ્मी बाई ने एक महिलाओं की सेना 'दुर्गा दल'भी बनाया था जिसका नेत्रित्व झलकारीबाई के हाथ में दे रखा था। झलकारीबाई की बीरगाथा भारत का बच्चा- बच्चा याद करेगा। की कैप्टन डा0 लક્ષमी सहगल और मानवती आर्या सरीखे જ્ઞાत तथा अજ્ઞાत वीरांगनाओं को याद किया जाना उतना ही आवस्यक है जितना मानव को जीवित रहने में भोजन की जरूरत है।
वीरांगना प्रीतिलता :-बंगाल की क्रांतिकारी महिला प्रीतिलता के वलिदान की गाथा के वगैर वीर गाथा अधूरा लगता है जो सूर्यसेन के साथ चटगाँव विद्रोह में मास्टर दा सूरसेन के साथ संग्राम रत रहकर शहादत को स्वेच्छया स्वीकार किया।इसी क्रम में बंगाल की कल्पना दत्त को भी कैसे भूला जा सकता है। बंगलादेश का मुक्ति युद्ध उन दिनों अपने चरम पर था तब शेख मुजीबुर्रहमान ने कलकत्ता में पुराने क्रान्तिकारियों के साथ गुप्त मीटींग में कहा कि मास्टर दा मांसूर्यसेन के अधूरे काम कोपूरा करना है।
कल्पना दत्त जोशी-उन्नीस वर्ष की आयु में क्रान्ति कारी अभियान में आकर उन्होने चटगाँव में भाषण दिया-"अगर दुनिया में सिर उठाकर जीना है तो अपने माथे पर से गुलामी का यह कलंक मिटाना होगा।" वे भी सूरसेन और तारकेश्वर दस्तीकार के सम्पर्क में थीं।उन्होने क्रान्तिकारी साहित्य पढ़कर तय हुआ जिस दिन क्रान्तिकारी रामकृष्ण एवं दिनेश गुप्त को फाँसी दी जाय उसी दिन जेल को डाइनामाइट से उड़ा दिया जाय। उन्ही दिनों कल्पना पहाड़ी तल्ला के पास पुरुष भेष में पकड़ी गयीं। पर वह छोड़ दी गयीं। दुबारा उनका घर घेर लिए जाने पर पुन: पकड़ ली गयीं। उन्होने कमुनिष्ट पार्टी में काम किया। उनपर पाबंदियाँ लगी और कलकत्ता छोड़ने का आदेश हुआ।
दिसम्बर14,1931 को त्रिपुरा के जिला मजिस्ट्रेट श्री सी़ जी बी स्टीवेंस को उन्हीं के बंगले में गो लड़कियाँ गोलियों से उन्हें भून दीं जो तैराकी दंगल के सम्बंध में बात करने हयी हुई थीं। लड़कियों का नाम था शान्ति घोष और कुमारी सुनीति चौधरी। फरवरी27,1932 को इन्हें आजीवन काला पानी का दण्ड मिला।और-
वीणादास- वीणादास को गवर्नर सर स्टैनले जैक्सन को दीક્ષાन्त में भाषण के दौरान गोली चलाने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया। वीणादास का निशाना चूक गया जिससे गवर्नर की जान बच गयी।(स्वतन्त्रता संग्राम पृ01
श्रीमती आसफअली- श्रीमती आसफअली तथा श्री अच्युत पटवर्धन ने अજ્ઞાतवास करते हुए सन् 1946 में मौलाना अबुलकलाम आजाद को जो पत्र लिखा था उससे क्रान्ति में भाग लेने वाली महिलाओं के नाम औस गतिविधि का पता चलता है। सन् 1942 की क्रान्ति में श्रीमती अरुणा आसफअली, श्रीमती सुचिता कृपलानी का नाम महत्वपूर्ण रूप से उल्लेखनीय है।
आँकड़े की माने तो सन्1942 अगस्त से दिसम्बर तक के विवरण में गिरफ्तारियों की संख्या -60229 और नजरबंदियों की संख्या
देश के क्रांतिकारी महायुद्ध में लज्जो देवी, शन्नो देवी, शहीद बैकुन्ठ की पत्नी राधिका देवी, सुशीला दीदी एवं रानी गादेन्ल्यू भारत छोड़ो आन्दोलन में शहीद हूई। फुलेना प्रसाद की पत्नी तारा रानी श्रीवास्तव,कानपुर के रामचन्द्र मुसद्दी की पत्नी श्री देवी मुसद्दी, झांसी बम काँड के लક્ષ્मी कान्त शुक्ल की पत्नी बसुमति शुक्ल, लखनऊ मे1942 में फासी पाने वाले क्रांतिकारी राजनारायण मिश्र की पत्नी, आजाद हिोंद फौज की वीरांगना लક્ષ્मी बाई, लક્ષ્मी बाई ने एक महिलाओं की सेना 'दुर्गा दल'भी बनाया था जिसका नेत्रित्व झलकारीबाई के हाथ में दे रखा था। झलकारीबाई की बीरगाथा भारत का बच्चा- बच्चा याद करेगा। की कैप्टन डा0 लક્ષमी सहगल और मानवती आर्या सरीखे જ્ઞાत तथा अજ્ઞાत वीरांगनाओं को याद किया जाना उतना ही आवस्यक है जितना मानव को जीवित रहने में भोजन की जरूरत है।
वीरांगना प्रीतिलता :-बंगाल की क्रांतिकारी महिला प्रीतिलता के वलिदान की गाथा के वगैर वीर गाथा अधूरा लगता है जो सूर्यसेन के साथ चटगाँव विद्रोह में मास्टर दा सूरसेन के साथ संग्राम रत रहकर शहादत को स्वेच्छया स्वीकार किया।इसी क्रम में बंगाल की कल्पना दत्त को भी कैसे भूला जा सकता है। बंगलादेश का मुक्ति युद्ध उन दिनों अपने चरम पर था तब शेख मुजीबुर्रहमान ने कलकत्ता में पुराने क्रान्तिकारियों के साथ गुप्त मीटींग में कहा कि मास्टर दा मांसूर्यसेन के अधूरे काम कोपूरा करना है।
कल्पना दत्त जोशी-उन्नीस वर्ष की आयु में क्रान्ति कारी अभियान में आकर उन्होने चटगाँव में भाषण दिया-"अगर दुनिया में सिर उठाकर जीना है तो अपने माथे पर से गुलामी का यह कलंक मिटाना होगा।" वे भी सूरसेन और तारकेश्वर दस्तीकार के सम्पर्क में थीं।उन्होने क्रान्तिकारी साहित्य पढ़कर तय हुआ जिस दिन क्रान्तिकारी रामकृष्ण एवं दिनेश गुप्त को फाँसी दी जाय उसी दिन जेल को डाइनामाइट से उड़ा दिया जाय। उन्ही दिनों कल्पना पहाड़ी तल्ला के पास पुरुष भेष में पकड़ी गयीं। पर वह छोड़ दी गयीं। दुबारा उनका घर घेर लिए जाने पर पुन: पकड़ ली गयीं। उन्होने कमुनिष्ट पार्टी में काम किया। उनपर पाबंदियाँ लगी और कलकत्ता छोड़ने का आदेश हुआ।
दिसम्बर14,1931 को त्रिपुरा के जिला मजिस्ट्रेट श्री सी़ जी बी स्टीवेंस को उन्हीं के बंगले में गो लड़कियाँ गोलियों से उन्हें भून दीं जो तैराकी दंगल के सम्बंध में बात करने हयी हुई थीं। लड़कियों का नाम था शान्ति घोष और कुमारी सुनीति चौधरी। फरवरी27,1932 को इन्हें आजीवन काला पानी का दण्ड मिला।और23:10, 14 अगस्त 2014 (UTC)
वीणादास- वीणादास को गवर्नर सर स्टैनले जैक्सन को दीક્ષાन्त में भाषण के दौरान गोली चलाने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया। वीणादास का निशाना चूक गया जिससे गवर्नर की जान बच गयी।(स्वतन्त्रता संग्राम पृ01
श्रीमती आसफअली- श्रीमती आसफअली तथा श्री अच्युत पटवर्धन ने अજ્ઞાतवास करते हुए सन् 1946 में मौलाना अबुलकलाम आजाद को जो पत्र लिखा था उससे क्रान्ति में भाग लेने वाली महिलाओं के नाम औस गतिविधि का पता चलता है। सन् 1942 की क्रान्ति में श्रीमती अरुणा आसफअली, श्रीमती सुचिता कृपलानी का नाम महत्वपूर्ण रूप से उल्लेखनीय है।
आँकड़े की माने तो सन्1942 अगस्त से दिसम्बर तक के विवरण में गिरफ्तारियों की संख्या -60229 और नजरबंदियों की संख्या-अट्ठारह हजार बतायी गयी। पुलिस/सेना द्वारा मारे गये लपोगों की संख्या हजारों में बतायी गयी। सरकारी आँकड़ा 940 लोगों के मारे जाने का था। जब कि जनता का कहना मानें तो पाँच हजार से कम लोग मारे न गये थे। दमनकारी चक्र में आहतों की संख्या1630 ही बतायी गयी। जब कि यह संख्या कई गुना अधिक थी। जनता की निहत्थी भीड़पर पाँच बार मशीनगन चलायी गयी। कितनी यातना सहा क्रांतिकारियों ने स्वाधीन कराने में भारत को।
श्रीमती सावित्री-आयरिश महिला श्रीमती सावित्री देवी के घर इलाहावाद में यशपाल नामक कथित लाहौर षडयन्त्र काण्ड के फरार व्यक्ति को22जनवरी 1932 को पकड़े जाने पर उसे14वर्षकी सजा तथा आयरिश महिला श्रीमती सावित्री देवी को 5 वर्ष की सजा मिली।
उत्तर भारत की प्रमुख क्रान्तिकारिणी श्री मती दुर्गा देवी,सुशीला देवी तथा प्रकाशवती का भी महत्वपूर्ण योगदान हमेसा याद किया जायेगा।(वही पृ0118 स्वतन्त्रता संग्राम)
माँ मूल मती- वाकया 19दिसम्बर1927 को गोरखपुर जेल में काकोरी काण्ड में फासी पाने वाले क्रान्ति कारी रामप्रसाद विस्मिल मां को देखकर विस्मिल की आँकों में आंसू आ गया। यह देख मां ने डाटते हुए कहा,'मैं तो समझती थी कि मेरे बेटे से ब्रिटिश सरकार डरती है। तुम्हे रोकर ही मरना था तो इस लाइन में क्यतों आए।'विस्मिल ने आंसू पोछते हुए कहा-'ये आंसू मौत के डर से नहीं,तुम्हारी ममता के हैं।तुम्हारी जैसी मां अब कहां मिलेगी। विश्वास रखो मां तुम्हारा बेटा कल वीरोचित मौत मरेगा।'(सप्तरंग11अगस्त1914ई0 )
उन्हो ने मृत्यु के पूर्व कई कविताएँ रची थीं। एक शेर यों था-
तंग आकर हम भी उनके जुल्म के बेदाद थे।
चल दिये सूये अदम जिन्दाने फैजाबाद से॥(स्वतन्त्रता संग्राम पृ096)
मां रामप्रसाद विस्मिल की लाश जब लेकर उर्दू बाजार से गुजरीं तो शही द बेटे की अर्थी रुकवाकर भाषण मे कहा-'मेरे पास ये बेटा था जो देश को दे दिया।अब एक और बेटा सुशीलहै जिसे जयदेव कपूर को सौपती हूँ कि वे इसे भी अपने भाई विसमिल की तरह बहादुर और बलिदानी बनाएं।' माँ का बहादुर कलेजा था, बहादुरीका मिशाल था भारत।माँ अपने सपूतो पर गर्व करेंगी। स्वाधीनता का इतिहास ऐसे ही क्रान्ति कारी वीरों से भरा है।
माँ सुनयना- मणीन्द्र नाथ का पूरा परिवार क्रान्तिकारी वीर था, सुनयना मां का भाग्य था जो पाँच क्रान्तिकारी पुत्रों को जन्म दिया था।
वह फतेहपुर के कारागार में 20जून1934ई0 को अपने आँँखों के सामने देखती रहीं कि मणिनाथ गुप्त के गोद में ब्रिटिस साम्राज्य के विरुद्ध अनशन करते हुए प्राण त्यागे।
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