द्वेषभाव को त्याग दो-सुखमंगल सिंह——————————————
सभी धर्म साथ दो औरों को संग लो,
शक्ति मेरे साथ हो कौशल विकास हो |
वेद -पुराण -उपनिषद समाज में बांच लो,
शास्त्र -साहित्य का मन वचन से वाक्य दो |
द्वेषभाव त्याग दो शक्ति को निखार लो ,
मितब्यता का हाथ हो पड़ोसियों का साथ दो|
शिक्षा सभ्यता परम्परा व् गुरुकुल- मान हो,
दिल्ली जौनपुर सिंध नालंदा काशी – भान हो|
नौजवान साथ दो कौशल विकास हो,
मित्रता साथ हाथ हो पड़ोस का साथ हो|
आओ !शहर -गाँव चलें गाँव में ठाँव लो,
खुद औद्योगिक नाव दो धरती खुशहाल हो|
अपने कर्म -धर्म से धर्मात्माओं साथ दो,
तक्षशिला -विक्रमशिला की शिक्षा याद हो|
राष्ट्रीय हर बच्चा -बच्चा मिलकर साथ हो,
भारत – भारतीय को विश्व में प्रकाश दो|
सुगम -सरल भाव हो निखिल हृदय चाव हो ,
क़ानून जो न हाथ लो द्धेष भाव त्याग दो |
मधुर -मनोहर चाव हो शक्ति को निखार दो,
समाज को सुधार दो जीवन को संवार लो|
प्राचीन ग्रंथों -परम्पराओं का ज्ञान दो
सभी धर्म साथ दो और आस -पास हों |
-सुखमंगल सिंह ,अवध निवासी
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