बसंत ऋतु पर सुखमंगल सिंह की रचनाएं "-
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Sukhmangal Singh
Feb 11, 2020, 8:07 AM (5 days ago)
to me
"बसंत ऋतु पर सुखमंगल सिंह की रचनाएं "-
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अजब की बसंती मस्ती छाने लगी ,
खिली -खिली धूप अभी आने लगी |
झूम उठा घर - आँगन यह मेरा,
पीला परिधान धरा भाने लगी |
*
मिलीं सखियाँ मोहीं रिझाने लगीं ,
पिया ना आयेगे बताने लगीं ?
मानों पशु -पक्षी मौन साध कर ,
चुपके ,गीत बसंती गाने लगते |
*
लहंगा पहने पुरुवाइया चलती ,
अधखिली धूप घुप मस्ती बहती !
आनंद सगरो छायों आयो रे ,
साजन गयो परदेश न आयो रे |
*
पिया परान बसंत धन आयो रे !
मोरा हियरा तुमही बुलायो री |
अरे ! जिया मोरा घबरायों रे ,
बसंती बयार -प्रीतम न आयो री |
***
महकता मडराता मदमाता मकरंद ,
मनभावन मोहक मस्ती मोहन के संग |
सुनहरी सिंदूरी सूरज किरणों के रंग ,
लाल टेसू पलास पुष्प जगमग बसंत |
ठंढ -ठंढ ठंढई ठगनी ठठोली ठेलत,
पीहर, सरसों मोहत हमें दिखावत रंग|
***
खिलखिलाकर धूप जब गाने लगी ,
मजदूर की काया निखार पाने लगी |
हँसती बावरी काया रो रहा ध्रुव
जवानी का मजा बुढ़ापे में आने लगा |
गौरैया घर आँगन चहचहाने लगीं ,
मुख मण्डल पर आभा छाने लगी |
'मंगल' समझ में आया, आने लगा
बसंत ऋतु मन को लुभाने लगा | |
-सुखमंगल सिंह ,अवध निवासी
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