Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हे ! मां सरयू तुम्हें प्रणाम

 

“हे ! मां सरयू तुम्हें प्रणाम

“बांचे वेद – शास्त्र हर द्वारे 

धरा को लहर – लहर सँवारे

भक्ति -शक्ति का पाठ पढाके 

मां सरयू तू हमें उबारे              

तुझसे सम्पन्न  अयोध्या धाम               

हे ! मां सरयू तुम्हें प्रणाम

तुझसे हर्षित हर कण कण है 

रूजन में मेरा हर क्षण है 

लहर से तेरी निकली ध्वनि ही 

कविता -कला का निर्मल मन है          

 बड़ा बन गया छोटा नाम            

हे ! मां सरयू तुम्हें प्रणाम 

श्री हनुमत आज्ञा पाकर के 

तुझमें जो डुबकी लगाता 

कई जन्मों के पाप धूल जाते 

स्वर्ग में जाके जगह वो पाता              

कहते  हैं जिसको सुरधाम              

हे ! मां सरयू तुम्हें प्रणाम 

युद्ध -कला -पारंगत करता 

धर्मराज का पाठ पढ़ाती 

संत – हितों की रक्षा खातिर 

तपसी -रूप के भेद बताती              

चलती सत्य का दामन थाम              

हे ! मां सरयू तुम्हें प्रणाम

 शिष्टता -चारित्रिक शुद्धता 

आदर- विश्वास का भाव जगाती 

राम – लखन -भरत – शत्रुघ्न को 

प्रतिपल निरख – निरख इठलाती            

भजती रहती सुबहो – शाम            

हे ! मां सरयू तुम्हें प्रणाम  

विनम्रता की माला पहन के 

विष्णु – पग – नख से तूं  निकली 

सुवर्ण मणि मुक्ता जड़ित अयोध्या 

की ओर तूं निकल चली            

देशो – दिशा तेरा गुणगान            

 हे ! मां सरयू तुम्हें प्रणाम                    

– सुखमंगल सिंह 

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