Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम

 

  हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम —————————-प्रिय अयोध्या श्रीराम का धाम       हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
श्री हनुमत रक्षा करें सदा  करें वास श्री भगत -हिरदय में श्री रघुनाथ – कृपा ऐसी कि प्रतिपल रहूँ राम के लय में  

राममय  रहूँ मैं सुबहो -शाम   हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
पुष्प संग पवन ,पवन संग चिड़िया चह – चह – चह – चह – करें सदा
काम – क्रोध – लोभ से मुक्त हो रिद्धि- सिद्धि घर में भरे सदा——————————————————- कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(३३ ) ——————————————————– चाहे छाँह रहे या घामहे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
भोले बाबा अवघड़ दानी सृष्टि में कोई नहीं है शानी शिव -भक्तों से जो भी उलझे हो जाती उसकी ख़तम कहानी
शिव – भक्ति मिले,विन मोल अउ दाम हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
शिव संग शक्ति, शक्ति से किरपा प्रतिपल हो , सुलभ आशीष सभी का शुभ चाहता चले जो राण में होता वही है बीस——————————————————- कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(३4 ) ———————————————————
नाम न होवे कभी अनाम हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
धर्म -कर्म -सद्भाव है जहां शम्भु अउ रघुवर कहें रहते वहां कपट -दम्भ सब दूर है जिसके उसके घर में कमी कहाँ
  चाहे दक्षिण हो या बाम हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम 

मां  सरयू तात बहुत महान     यहां घूमते थके न राम जिह्वा पर बस एक ही नाम राम,राम,बस राम ही राम ———————————————————  कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(३5 ) ——————————————————– 

      सीताराम ,सीताराम हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम 

राम कथा सरयू के तीर कहता -सुनाता होता वीर सुखमय उसका जीवन होता वह होता धीर – गंभीर
पी लेता वह राममय  जाम हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम 

मां  गंगा -सरयू और सरस्वती कल-कल करती बहती रहती पापी हो या हो पुण्यात्मा दुःख – पाप सब हरती रहती
दुःख पाप हरना ही है दाम हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
————————————————————- कवि हूँ मैं सरयू –तट का / सुखमंगल सिंह(३6 )
———————————————————-देवलोक जैसा मनमोहक सरयू तीरे धरा है न्यारी महिमा गान से किरपा पाकर जान-जान हो जाय सुखारी
परिक्रमा लगे कि चारो धाम हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
सगुण प्रभु -लीला जो जान गाये देह -गेह सब स्वच्छ हो जाये सारे भरम ,मिट जाये पल में सभी पाप -संताप मिटाये
राम- भक्ति है ललित ललाम हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
जो रघुवर -प्रेम -भक्ति में लीन नहीं रह जाता वह दीन उसकी पूजी बढ़ती जाती कोई नहीं पाता है छीन
सब कुछ मिल जाता विन दाम
हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम
कल -कल- कल -कल ध्वनि से हरि हर का करती गुणगान बहती जाती और बताती भूत – भविष्य और वर्तमान
पाया तुम्हीं से मानव ज्ञान और विज्ञान                   हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम 

वाल्मीक ने बालकाण्ड में खूब किया है तेरा बखान कालिदास ने रघुवंशम में तुलसी -मांस में गुणगान
तेरी महिमा है गुणों की खान    हे माँ ! सरयू तुम्हें प्रणाम   -सुखमंगल सिंह    

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