Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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"शंका समाधान "

 

"शंका समाधान "

सुबह में शाम में अपने पर विचार करता मैं,
ईश्वर तुमको प्रतिदिन पुकारता हूँ मैं।
कुछ ना कुछ बुराई तो हुई होगी मुझसे,
मौन होकर प्रभु सब कुछ विचारता हूँ मैं।।

किसलिए आप ने है जन्म दिया इस जहां में,
दु:ख - दर्द को सीने में उदारता हूँ मैं।
मेरा दर्द लोग झुठ लाएंगे जानता हूँ
जो काम बिगड़ गया उसे सुधारता हूँ मैं।।

जब आप साथ होती बात कुछ और होती,
जिंदगी में जहर घुला उसे पी रहा हूँ मैं।
कब तक किसी की राहें निहार पाऊंगा,
नित निगाहों में दिन - रात पालता रहा मैं।।

आप आस - पास होते तो टल जाता समय,
महा मुश्किलों के दौर से गुजर रहा हूँ मैं।
जब नाथ पास रहते हैं दूर रहतीं मुश्किलें,
बुरे, एकांत में बैठ कर रो रहा हूँ मैं।।

व्यास जय सम तप तपस्या पर जा नहीं सकता,
मैं व्यास जैसी तपस्या भी कर नहीं सकता।
धन वर्षा चा रो तरफ से वो रही है देखता,
परीक्षित दृश्य नदी किनारे बैठ गया मैं।।

महर्षि शुकदेव सा घूम नहीं सकता हूँ ,
पग में पड़ी मुश्किल मुस्करा रही है क्यों।
माना संकटों का डर रहता है कुछ घड़ी,
चारों ओर की परेशानियाँ काटते तुम्हीं।।

- सुख मंगल सिंह



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