" अज्ञेय की समीक्षा में विद्रोही"?
अज्ञेय का साहसिक व्यक्तित्व मूलतः
विद्रोह, नवीन प्रयोगों की मांग करता।
अपर्याप्तता के द्वारा सिद्ध करना चाहता,
प्रतिभाशाली व्यक्ति में कमी नहीं होती।।
इसीलिए समाज के माननीय मार्गों पर,
चलने में वह हमेसा असमर्थ दिखाता।
उसके अपनी उपयोग गतिमान के अनुसार,
न बनने के कारण वह विद्रोह करता।।
अपर्याप्त ही सही,पर वह अपने लिए,
नया मार्ग बनाने का रास्ता खोजता है।
प्रतिभाशाली व्यक्ति अपर्याप्त के विरुद,
क्षतिपूर्ति सिद्धांत अनुसार विद्रोह करता है।।
अज्ञेय अपने कला सिद्धांत के विवेचन में,
'आत्मा स्थापन'मैं अपनी ओर से भी जोड़ा!
समाज के साधारण जीवन में अपना स्थान,
पुरानी लीक पर चलकर, लीक बनाने का समर्थ प्रोत्साहन देती बताया।।
भौतिक अनुपयोगिता की क्षतपूर्ति के लिए,
आदिमानव ने अपना प्रयास किया।
कला सामाजिक अनुप्रयो गिता के विरुद,
अपनी को प्रमाणित करने का प्रयत्न,
अपर्याप्त के विरुद्ध विद जो बताया ।।
अचेतन रूप से कलात्मक चेष्टा द्वारा,
कला को वह जन्म दिया होगा बताया।
साहित्यकार के परस्पर संबंध और मन: स्थिति,
महत्वपूर्ण विचार सूत्र, निष्कर्ष की उसकी पूर्ती की।
हिंदी कवियों की कविताओं का उदाहरण देकर,
अपना समीक्षात्मक विचार व्यक्त किया।।
आलोचना सर्वासंत: मौलिक होने का दावा नहीं,
लेखक ने प्रारंभ में ही स्वीकृत कर लिया।
मौलिक होने का दावा यदि कोई करता हो,
तो यह उसकी भ्रांति और दंभ ही माना जाएगा।।
एडलर की मनो विश्लेषण संबंधी सिद्धांत,
सदा आलोचना में नया कम ही होता है!
'कला क्या है'? मैं अज्ञेय ने जो सूत्र दिया,
उससे मान्यता का मूल स्रोत पता चल जाता है।।
अज्ञेय हिंदी के एकमात्र ऐसे साहित्यकार थे,
जिसने मनो विश्लेषण शास्त्र का गहरा अध्ययन किया।
उसको रसात्मक और आलोचनात्मक प्रयासों से,
मौलिक समर्थन देकर निज स्वीकृति प्रदान किया।।
इनके निबंध में काव्य कला के सिद्धांत पक्ष,
पर खास तरह से विचार किया गया।
उनके साहित्य को पढ़कर रचनाकार के,
प्रेरणा स्रोत और साहित्यिक प्रवृत्तियां समझने में मदद मिलती।।
( साभार हि. सा. का. वृ. इतिहास)
- सुख मंगल सिंह
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