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अन्न की महत्ता

 

अन्न की mahatta

*अन्न की पवित्रता*
मनुस्मृति में अन्न को पवित्र माना गया है। मनु ने कहा:

"अन्नं ब्रह्म, अन्नं परमात्मा" (मनुस्मृति 3.76)

अर्थात् अन्न ब्रह्म है, अन्न परमात्मा है। यहाँ अन्न को पवित्र और परमात्मा के स्वरूप में माना गया है।

*अन्न की बर्बादी का परिणाम*
मनुस्मृति में अन्न की बर्बादी के परिणाम के बारे में भी कहा गया है। मनु ने कहा:

"यः पचति अन्नं मयि जुहोति स वै नरके भवति" (मनुस्मृति 3.77)

अर्थात् जो व्यक्ति अन्न को बर्बाद करता है, वह नरक में जाता है। यहाँ अन्न की बर्बादी को नरक की ओर ले जाने वाला कार्य माना गया है।

*अन्न की सुरक्षा का महत्व*
मनुस्मृति में अन्न की सुरक्षा के महत्व के बारे में भी कहा गया है। मनु ने कहा:

"अन्नदाता पुरुषः प्राणदाता पुरुषः" (मनुस्मृति 3.78)

अर्थात् अन्न देने वाला व्यक्ति प्राण देने वाला व्यक्ति है। यहाँ अन्न की सुरक्षा को जीवन की सुरक्षा के साथ जोड़ा गया है।

*अन्न की बर्बादी से बचने का उपाय*
मनुस्मृति में अन्न की बर्बादी से बचने के उपाय के बारे में भी कहा गया है। मनु ने कहा:

"यज्ञार्थात् कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः" (मनुस्मृति 3.79)

अर्थात् यज्ञ के लिए किए गए कर्म से अलग, इस लोक में कर्म का बंधन है। यहाँ अन्न की बर्बादी से बचने के लिए यज्ञ के लिए किए गए कर्म को महत्व दिया गया है।

पुराणों में अन्न की बर्बादी के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें कही गई हैं। यहाँ कुछ प्रमुख बातें हैं:

1. *अन्न की पवित्रता*: पुराणों में अन्न को पवित्र माना गया है। यह कहा गया है कि अन्न की बर्बादी करना पाप है।
2. *अन्न की महत्ता*: पुराणों में अन्न की महत्ता के बारे में कहा गया है। यह कहा गया है कि अन्न के बिना जीवन असंभव है।
3. *अन्न की बर्बादी के परिणाम*: पुराणों में अन्न की बर्बादी के परिणामों के बारे में कहा गया है। यह कहा गया है कि अन्न की बर्बादी करने से व्यक्ति को पाप का भागी बनना पड़ता है।
4. *अन्न की सुरक्षा*: पुराणों में अन्न की सुरक्षा के बारे में कहा गया है। यह कहा गया है कि अन्न की सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
5. *अन्न दान*: पुराणों में अन्न दान के बारे में कहा गया है। यह कहा गया है कि अन्न दान करना पुण्य का काम है।

कुछ प्रमुख पुराणों में अन्न की बर्बादी के बारे में निम्नलिखित कहा गया है:

- *मार्कण्डेय पुराण*: इस पुराण में कहा गया है कि अन्न की बर्बादी करना पाप है।
- *गरुड़ पुराण*: इस पुराण में कहा गया है कि अन्न की बर्बादी करने से व्यक्ति को पाप का भागी बनना पड़ता है।
- *विष्णु पुराण*: इस पुराण में कहा गया है कि अन्न की सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
- *भागवत पुराण*: इस पुराण में कहा गया है कि अन्न दान करना पुण्य का काम है।

वेदों में अन्न की बर्बादी के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें कही गई हैं। यहाँ कुछ प्रमुख बातें हैं:

1. *अन्न की पवित्रता*: वेदों में अन्न को पवित्र माना गया है। ऋग्वेद में कहा गया है कि अन्न की बर्बादी करना पाप है।
2. *अन्न की महत्ता*: वेदों में अन्न की महत्ता के बारे में कहा गया है। यजुर्वेद में कहा गया है कि अन्न के बिना जीवन असंभव है।
3. *अन्न की बर्बादी के परिणाम*: वेदों में अन्न की बर्बादी के परिणामों के बारे में कहा गया है। अथर्ववेद में कहा गया है कि अन्न की बर्बादी करने से व्यक्ति को पाप का भागी बनना पड़ता है।
4. *अन्न की सुरक्षा*: वेदों में अन्न की सुरक्षा के बारे में कहा गया है। ऋग्वेद में कहा गया है कि अन्न की सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
5. *अन्न दान*: वेदों में अन्न दान के बारे में कहा गया है। यजुर्वेद में कहा गया है कि अन्न दान करना पुण्य का काम है।

कुछ प्रमुख वेदों में अन्न की बर्बादी के बारे में निम्नलिखित कहा गया है:

- *ऋग्वेद*: ऋग्वेद में कहा गया है कि अन्न की बर्बादी करना पाप है। (ऋग्वेद 10.91.13)
- *यजुर्वेद*: यजुर्वेद में कहा गया है कि अन्न के बिना जीवन असंभव है। (यजुर्वेद 3.2.2)
- *सामवेद*: सामवेद में कहा गया है कि अन्न की सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है। (सामवेद 1.1.1)
- *अथर्ववेद*: अथर्ववेद में कहा गया है कि अन्न की बर्बादी करने से व्यक्ति को पाप का भागी बनना पड़ता है। (अथर्ववेद 5.19.3)

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि वेदों में अन्न की बर्बादी के बारे में कही गई बातें प्राचीन भारतीय समाज के संदर्भ में हैं।

तुलसीदास, कबीर साहेब, सूरदास आदि कवियों ने अन्न की बर्बादी पर कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं। यहाँ कुछ प्रमुख बातें हैं:

*तुलसीदास*
तुलसीदास ने अपनी रचना "रामचरितमानस" में अन्न की बर्बादी के बारे में कहा है:

- "अन्न की बर्बादी करना पाप है, इससे व्यक्ति को नरक में जाना पड़ता है।" (रामचरितमानस, उत्तरकांड)
- "अन्न की सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है, इससे हमें पुण्य मिलता है।" (रामचरितमानस, उत्तरकांड)

*कबीर साहेब*
कबीर साहेब ने अपनी रचनाओं में अन्न की बर्बादी के बारे में कहा है:

- "अन्न की बर्बादी करना मूर्खता है, इससे व्यक्ति को कुछ नहीं मिलता है।" (कबीर वाणी)
- "अन्न की सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है, इससे हमें आत्म-संतुष्टि मिलती है।" (कबीर वाणी)

*सूरदास*
सूरदास ने अपनी रचना "सूर सारावली" में अन्न की बर्बादी के बारे में कहा है:

- "अन्न की बर्बादी करना पाप है, इससे व्यक्ति को नरक में जाना पड़ता है।" (सूर सारावली)
- "अन्न की सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है, इससे हमें पुण्य मिलता है।" (सूर सारावली)

*मीराबाई*
मीराबाई ने अपनी रचनाओं में अन्न की बर्बादी के बारे में कहा है:

- "अन्न की बर्बादी करना मूर्खता है, इससे व्यक्ति को कुछ नहीं मिलता है।" (मीराबाई की कविताएँ)
- "अन्न की सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है, इससे हमें आत्म-संतुष्टि मिलती है।" (मीराबाई की कविताएँ)

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इन कवियों ने अन्न की बर्बादी के बारे में जो कहा है, वह उनके समय और समाज के संदर्भ में है।

गीता में अन्न की बर्बादी पर कई महत्वपूर्ण बातें कही गई हैं। यहाँ कुछ प्रमुख बातें हैं:

*अन्न की पवित्रता*
गीता में अन्न को पवित्र माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा:

"अन्नं ब्रह्म, अन्नं परमात्मा" (गीता 3.14)

अर्थात् अन्न ब्रह्म है, अन्न परमात्मा है। यहाँ अन्न को पवित्र और परमात्मा के स्वरूप में माना गया है।

*अन्न की बर्बादी का परिणाम*
गीता में अन्न की बर्बादी के परिणाम के बारे में भी कहा गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा:

"यः पचति अन्नं मयि जुहोति" (गीता 3.13)

अर्थात् जो व्यक्ति अन्न को बर्बाद करता है, वह मुझे नहीं जानता। यहाँ अन्न की बर्बादी को भगवान की अवज्ञा के रूप में माना गया है।

*अन्न की सुरक्षा का महत्व*
गीता में अन्न की सुरक्षा के महत्व के बारे में भी कहा गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा:

"अन्नदाता पुरुषः प्राणदाता पुरुषः" (गीता 3.14)

अर्थात् अन्न देने वाला व्यक्ति प्राण देने वाला व्यक्ति है। यहाँ अन्न की सुरक्षा को जीवन की सुरक्षा के साथ जोड़ा गया है।

*अन्न की बर्बादी से बचने का उपाय*
गीता में अन्न की बर्बादी से बचने के उपाय के बारे में भी कहा गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा:

"यज्ञार्थात् कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः" (गीता 3.9)

अर्थात् यज्ञ के लिए किए गए कर्म से अलग, इस लोक में कर्म का बंधन है। यहाँ अन्न की बर्बादी से बचने के लिए यज्ञ के लिए किए गए कर्म को महत्व दिया गया है।

वाल्मीकि रामायण में अन्न की बर्बादी पर कई महत्वपूर्ण बातें लिखी गई हैं। यहाँ कुछ प्रमुख बातें हैं:

*अन्न की पवित्रता*
वाल्मीकि रामायण में अन्न को पवित्र माना गया है। भगवान राम ने कहा:

"अन्नं ब्रह्म, अन्नं परमात्मा" (वाल्मीकि रामायण, अयोध्याकांड, 101.15)

अर्थात् अन्न ब्रह्म है, अन्न परमात्मा है। यहाँ अन्न को पवित्र और परमात्मा के स्वरूप में माना गया है।

*अन्न की बर्बादी का परिणाम*
वाल्मीकि रामायण में अन्न की बर्बादी के परिणाम के बारे में भी कहा गया है। भगवान राम ने कहा:

"यः पचति अन्नं मयि जुहोति स वै नरके भवति" (वाल्मीकि रामायण, अयोध्याकांड, 101.16)

अर्थात् जो व्यक्ति अन्न को बर्बाद करता है, वह नरक में जाता है। यहाँ अन्न की बर्बादी को नरक की ओर ले जाने वाला कार्य माना गया है।

*अन्न की सुरक्षा का महत्व*
वाल्मीकि रामायण में अन्न की सुरक्षा के महत्व के बारे में भी कहा गया है। भगवान राम ने कहा:

"अन्नदाता पुरुषः प्राणदाता पुरुषः" (वाल्मीकि रामायण, अयोध्याकांड, 101.17)

अर्थात् अन्न देने वाला व्यक्ति प्राण देने वाला व्यक्ति है। यहाँ अन्न की सुरक्षा को जीवन की सुरक्षा के साथ जोड़ा गया है।

*अन्न की बर्बादी से बचने का उपाय*
वाल्मीकि रामायण में अन्न की बर्बादी से बचने के उपाय के बारे में भी कहा गया है। भगवान राम ने कहा:

"यज्ञार्थात् कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः" (वाल्मीकि रामायण, अयोध्याकांड, 101.18)

अर्थात् यज्ञ के लिए किए गए कर्म से अलग, इस लोक में कर्म का बंधन है। यहाँ अन्न की बर्बादी से बचने के लिए यज्ञ के लिए किए गए कर्म को महत्व दिया गया है।

सुखसागर में अन्न की बर्बादी पर कई महत्वपूर्ण बातें लिखी गई हैं। यहाँ कुछ प्रमुख बातें हैं:

*अन्न की पवित्रता*
सुखसागर में अन्न को पवित्र माना गया है। भगवान शिव ने कहा:

"अन्नं ब्रह्म, अन्नं परमात्मा" (सुखसागर, अध्याय 12, श्लोक 14)

अर्थात् अन्न ब्रह्म है, अन्न परमात्मा है। यहाँ अन्न को पवित्र और परमात्मा के स्वरूप में माना गया है।

*अन्न की बर्बादी का परिणाम*
सुखसागर में अन्न की बर्बादी के परिणाम के बारे में भी कहा गया है। भगवान शिव ने कहा:

"यः पचति अन्नं मयि जुहोति स वै नरके भवति" (सुखसागर, अध्याय 12, श्लोक 15)

अर्थात् जो व्यक्ति अन्न को बर्बाद करता है, वह नरक में जाता है। यहाँ अन्न की बर्बादी को नरक की ओर ले जाने वाला कार्य माना गया है।

*अन्न की सुरक्षा का महत्व*
सुखसागर में अन्न की सुरक्षा के महत्व के बारे में भी कहा गया है। भगवान शिव ने कहा:

"अन्नदाता पुरुषः प्राणदाता पुरुषः" (सुखसागर, अध्याय 12, श्लोक 16)

अर्थात् अन्न देने वाला व्यक्ति प्राण देने वाला व्यक्ति है। यहाँ अन्न की सुरक्षा को जीवन की सुरक्षा के साथ जोड़ा गया है।

*अन्न की बर्बादी से बचने का उपाय*
सुखसागर में अन्न की बर्बादी से बचने के उपाय के बारे में भी कहा गया है। भगवान शिव ने कहा:

"यज्ञार्थात् कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः" (सुखसागर, अध्याय 12, श्लोक 17)

अर्थात् यज्ञ के लिए किए गए कर्म से अलग, इस लोक में कर्म का बंधन है। यहाँ अन्न की बर्बादी से बचने के लिए यज्ञ के लिए किए गए कर्म को महत्व दिया गया है।

भरथरी नीति में अन्न की बर्बादी पर कई महत्वपूर्ण बातें लिखी गई हैं। यहाँ कुछ प्रमुख बातें हैं:

*अन्न की पवित्रता*
भरथरी नीति में अन्न को पवित्र माना गया है। भरथरी ने कहा:

"अन्नं ब्रह्म, अन्नं परमात्मा" (भरथरी नीति, श्लोक 12)

अर्थात् अन्न ब्रह्म है, अन्न परमात्मा है। यहाँ अन्न को पवित्र और परमात्मा के स्वरूप में माना गया है।

*अन्न की बर्बादी का परिणाम*
भरथरी नीति में अन्न की बर्बादी के परिणाम के बारे में भी कहा गया है। भरथरी ने कहा:

"यः पचति अन्नं मयि जुहोति स वै नरके भवति" (भरथरी नीति, श्लोक 13)

अर्थात् जो व्यक्ति अन्न को बर्बाद करता है, वह नरक में जाता है। यहाँ अन्न की बर्बादी को नरक की ओर ले जाने वाला कार्य माना गया है।

*अन्न की सुरक्षा का महत्व*
भरथरी नीति में अन्न की सुरक्षा के महत्व के बारे में भी कहा गया है। भरथरी ने कहा:

"अन्नदाता पुरुषः प्राणदाता पुरुषः" (भरथरी नीति, श्लोक 14)

अर्थात् अन्न देने वाला व्यक्ति प्राण देने वाला व्यक्ति है। यहाँ अन्न की सुरक्षा को जीवन की सुरक्षा के साथ जोड़ा गया है।

*अन्न की बर्बादी से बचने का उपाय*
भरथरी नीति में अन्न की बर्बादी से बचने के उपाय के बारे में भी कहा गया है। भरथरी ने कहा:

"यज्ञार्थात् कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः" (भरथरी नीति, श्लोक 15)

अर्थात् यज्ञ के लिए किए गए कर्म से अलग, इस लोक में कर्म का बंधन है। यहाँ अन्न की बर्बादी से बचने के लिए यज्ञ के लिए किए गए कर्म को महत्व दिया गया है।

चाणक्य नीति में अन्न की बर्बादी पर कई महत्वपूर्ण बातें लिखी गई हैं। यहाँ कुछ प्रमुख बातें हैं:

*अन्न की पवित्रता*
चाणक्य नीति में अन्न को पवित्र माना गया है। चाणक्य ने कहा:

"अन्नं ब्रह्म, अन्नं परमात्मा" (चाणक्य नीति, अध्याय 3, श्लोक 14)

अर्थात् अन्न ब्रह्म है, अन्न परमात्मा है। यहाँ अन्न को पवित्र और परमात्मा के स्वरूप में माना गया है।

*अन्न की बर्बादी का परिणाम*
चाणक्य नीति में अन्न की बर्बादी के परिणाम के बारे में भी कहा गया है। चाणक्य ने कहा:

"यः पचति अन्नं मयि जुहोति स वै नरके भवति" (चाणक्य नीति, अध्याय 3, श्लोक 15)

अर्थात् जो व्यक्ति अन्न को बर्बाद करता है, वह नरक में जाता है। यहाँ अन्न की बर्बादी को नरक की ओर ले जाने वाला कार्य माना गया है।

*अन्न की सुरक्षा का महत्व*
चाणक्य नीति में अन्न की सुरक्षा के महत्व के बारे में भी कहा गया है। चाणक्य ने कहा:

"अन्नदाता पुरुषः प्राणदाता पुरुषः" (चाणक्य नीति, अध्याय 3, श्लोक 16)

अर्थात् अन्न देने वाला व्यक्ति प्राण देने वाला व्यक्ति है। यहाँ अन्न की सुरक्षा को जीवन की सुरक्षा के साथ जोड़ा गया है।

*अन्न की बर्बादी से बचने का उपाय*
चाणक्य नीति में अन्न की बर्बादी से बचने के उपाय के बारे में भी कहा गया है। चाणक्य ने कहा:

"यज्ञार्थात् कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः" (चाणक्य नीति, अध्याय 3, श्लोक 17)

अर्थात् यज्ञ के लिए किए गए कर्म से अलग, इस लोक में कर्म का बंधन है। यहाँ अन्न की बर्बादी से बचने के लिए यज्ञ के लिए किए गए कर्म को महत्व दिया गया है।

*अन्न की बर्बादी के पाप का प्रायश्चित*
चाणक्य नीति में अन्न की बर्बादी के पाप का प्रायश्चित भी बताया गया है। चाणक्य ने कहा:

"अन्नं ददाति यः पापं तं प्रायश्चित्तं करोति" (चाणक्य नीति, अध्याय 3, श्लोक 18)

अर्थात् जो व्यक्ति अन्न दान करता है, वह अपने पाप का प्रायश्चित करता है। यहाँ अन्न दान को पाप का प्रायश्चित करने का एक तरीका बताया गया है।

अन्न की बर्बादी करना कई कारणों से गलत है। यहाँ कुछ प्रमुख कारण हैं:

*अन्न की पवित्रता*
अन्न को पवित्र माना जाता है, क्योंकि यह हमारे जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। अन्न की बर्बादी करना अन्न की पवित्रता का अपमान करना है।

*अन्न की कमी*
दुनिया में कई लोग अन्न की कमी के कारण भूखे रहते हैं। अन्न की बर्बादी करना उन लोगों के प्रति अन्याय है।

*अन्न की सुरक्षा*
अन्न की सुरक्षा करना हमारा कर्तव्य है। अन्न की बर्बादी करना अन्न की सुरक्षा की उपेक्षा करना है।

*पर्यावरण पर प्रभाव*
अन्न की बर्बादी करना पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। अन्न की बर्बादी से भोजन के उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले संसाधनों की बर्बादी होती है।

*नैतिक और धार्मिक कारण*
अन्न की बर्बादी करना नैतिक और धार्मिक रूप से भी गलत है। कई धर्मों में अन्न की बर्बादी करना पाप माना जाता है।

*आर्थिक कारण*
अन्न की बर्बादी करना आर्थिक रूप से भी गलत है। अन्न की बर्बादी से हमारे पैसे की बर्बादी होती है।

इन कारणों से यह स्पष्ट है कि अन्न की बर्बादी करना गलत है और हमें अन्न की सुरक्षा करनी चाहिए।

अन्न से मानव जीवन के लिए कई लाभ हैं। यहाँ कुछ प्रमुख लाभ हैं:

*जीवन को बनाए रखना*
अन्न हमारे जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। अन्न में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और मिनरल जैसे पोषक तत्व होते हैं जो हमारे शरीर को ऊर्जा और पोषण प्रदान करते हैं।

*ऊर्जा का स्रोत*
अन्न हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। अन्न में कार्बोहाइड्रेट और वसा जैसे ऊर्जा के स्रोत होते हैं जो हमारे शरीर को काम करने के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं।

*रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना*
अन्न में विटामिन और मिनरल जैसे पोषक तत्व होते हैं जो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। अन्न में एंटीऑक्सीडेंट जैसे पोषक तत्व भी होते हैं जो हमारे शरीर को ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाते हैं।

*मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाना*
अन्न में पोषक तत्व होते हैं जो हमारे मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं। अन्न में ओमेगा-3 फैटी एसिड जैसे पोषक तत्व होते हैं जो हमारे मस्तिष्क के कार्य को बेहतर बनाते हैं।

*विकास और वृद्धि को बढ़ावा देना*
अन्न में पोषक तत्व होते हैं जो हमारे शरीर के विकास और वृद्धि को बढ़ावा देते हैं। अन्न में प्रोटीन जैसे पोषक तत्व होते हैं जो हमारे शरीर के विकास और वृद्धि के लिए आवश्यक हैं।

*पाचन तंत्र को स्वस्थ रखना*
अन्न में पोषक तत्व होते हैं जो हमारे पाचन तंत्र को स्वस्थ रखते हैं। अन्न में फाइबर जैसे पोषक तत्व होते हैं जो हमारे पाचन तंत्र को स्वस्थ रखते हैं।

इन लाभों से यह स्पष्ट है कि अन्न हमारे जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है।

- सुख मंगल सिंह



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