बारिश बाद निकली धूप
चमकीली चटकीली हवा के झोंके
धारदार बारिश बाद निकली धूप।
उठती गिरती सांस सी चलती
तेज तेज बिजली की भारी कड़क।
उमस जस की तस दुपट्टे से पोंछा
हवा रो लेने के बाद स्वच्छंद थी।
चटकीली चमकीली हवा के झोंके
धारदार बारिश बाद निकली धूप।।
पेड़ों की फुनगियां नाच रही ऐसे
कभी नीचे की ओर कभी आसमान में।
बारिश में कपड़े भीग रहे थे सारे
अपनी छत पर गिरे कपड़ों को फैला रहा था।
चटकीली चमकीली हवा के झोंके
धारदार बारिश बाद निकली धूप।।
आवाज आई अंदर कर लो सूरज निकल आया
कपड़े सूख गए उन्हें अब उठा लो।
रोज-रोज दो-तीन बार छत पर जाना होता
अवचक फुहार पढ़ने लगे तो एक दो बार और।
चमकीली चटकीली हवा के झोंके
धारदार बारिश बाद निकली धूप।।
कपड़े डालते उतारते इधर-उधर देखा
बैठी एक लड़की हमेशा पढ़ती रहती।
सुबह हो वह शाम हो हर समय दिखती
कभी बादलों की वजह से अंधेरा गहरा जाता।
चमकीली चटकीली हवाओं के झोंके
धारदार बारिश बाद निकली धूप।।
वह मेज पर लैंप जलाए पढती रहती
तब मुंह पर पड़ रही सीधी चमकीली
रोशनी में सदा पढ़ती हुई दिखती
मैं सोचता इसे कुछ और नहीं करना है।
चमकीली चटकीली हवा के झोंके
धारदार बारिश बाद निकली धूप ।।
आज मैं कपड़े डालकर चारपाई पर लेट गया
पड़ोसी लड़कियां बाहर घूमने जाने की तैयारी में
मुझे लगा यह लड़की जो हमेशा पढ़ती रहती
वह भी घूमने जाएगी पर वह पढ़ती रही।
चमकीली चटकीली हवा के झोंके
धारदार बारिश बाद निकली धूप।
-सुख मंगल सिंह
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