"भक्त और भक्ति योग"
साधक उनकी भाग के अनुसार,
भक्ति योग का अनेक प्रकार होता।
स्वभाव और गुणों के भेद से मनुष्य,
के भाव में भी भिन्नता आ जाती है।।
मात्सर्य का भाग रखने वाला व्यक्ति,
वह ही तामस भक्त कहलाता है।
यश - ऐश्वर्या की कामना करने वाला,
वह राजस भक्त कहा जाता है।।
पापों का क्षय के लिए जो व्यक्ति,
सब परमात्मा को अर्पण करता,
पूजन करना अपना कर्तव्य समझता,
वह सात्विक भक्त कहलाता है।।
जो निष्काम और अनन्य प्रेम करता,
पुरुषोत्तम के प्रति अनन्य भक्ति रखता,
अपनी मान की गति पर काबू रखता,
वह भक्ति योग का लक्षण का ज्ञाता।।
भगवत सेवा के लिए मुक्ति का तिरस्कार करने वाला,
भक्ति योग अथवा साध्य परम पुरुषार्थ कहलाता है।
भक्ति योग में तत्पर और राग द्वेष से दूर जीव ,
परमात्मा को प्राप्त कर लेता है।।
गुरु परमात्मा का अनादर करके
केवल भूमि पूजन करता है,
उस जीव की पूजा स्वांग मात्र है।
परमेश्वर सभी भूतों में स्थित है ऐसी स्थिति में उपेक्षा कर प्रतिमा पूजन करने वाला,
भस्म में ही वह हवन करता है।।
जो अभिमानी पुरुष जीव से बैर रखता और शरीर में विद्यमान आत्मा से द्वेष करता,
उसके मन को कभी शांति नहीं मिलती।।
जो पुरुष दूसरे जीवो का अपमान करता है,
घटिया बढ़िया वस्तु से विविध प्रकार मूर्ति पूजा करता है,
उससे भी ईश्वर प्रश्न नहीं होता!
जो मनुष्य आत्मा और परमात्मा के बीच थोड़ा सा भी अंतर करता है,
परमात्मा उसके लिए मृत्यु से महान भय उपस्थित करता है।।
ब्राम्हणों में वेद को जानने वाले 'उत्तम,'
वेदग्यों मैं भी बेकार तात्पर्य ने वाले श्रेष्ठ हैं।
अंशु रूप से भगवान ही सभी ने विद्यमान है,
मानकर प्राणियों को आदर के साथ मन से प्रणाम करना चाहिए।।
भक्ति योग अथवा अष्टांग योग में से किसी एक का साधना करने से,
परम पुरुष भगवान को प्राप्त किया जा सकता है।
इसका ना तो कोई मित्र है और ना कोई शत्रु, और ना ही कोई सगा संबंधी,
यह सदा सजग रहता है और भोग रूप प्रमाद में पड़े आदमियों पर आक्रमण कर संहार करता है।।
इसके भय से वायु चलता है, इसी से सूर्य तपका है, इसी के भय से इंद्र बरसा करते हैं और इसी के भय से तारे चमकते हैं।
औषधियां के सहित लताएं और सारी वनस्पतियां समय समय पर फल फूल धारण करती हैं।।
नदियां बहती हैं, समुद्र अपनी मर्यादा से बाहर नहीं जाता,
आदरणीय लिख होती है और पर्वत के सही पृथ्वी जल में नहीं डूबती।
यह पिता से पुत्र की उत्पत्ति कराता हुआ सारे जगत का रचनाकार है,
अपनी संहार शक्ति मृत्यु के द्वार यमराज को भी मरवाकर उसका अंत कर देता है।।
( साभार श्री भागवत)
- सुख मंगल सिंह
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