''भाषा में परिवर्तन"
भारतवर्ष की बोलने की भाषा में,
बड़े-बड़े परिवर्तन होते रहे।
वैदिक काल की भाषा में प्रमुख रुप से
ऋग्वेद की संस्कृत भाषा रही।
और ऐतिहासिक कॉल में भाषा उनकी
वह ब्राम्हणों की संस्कृत हो गई।
दार्शनिक और बौद्ध काल की भाषा
संस्कृत और पाली भाषा रही।।
पौराणिक कॉल की बदलकर भाषा
दशमी शताब्दी में हिंदी हो गई।
इतिहास पर अगर गौर आज करें तो
राजपूतों के उदय समय से हिंदी रही।।
यद्यपि अशोक के शिलालेख लिखा,
अलग अलग भाग में वही बोली होती।
पाली संस्कृति बड़ी बेटी कहलाती है।
भारत के विभिन्न भागोंमें बोली जाती।
देश में तीन प्रकार की भाषाएं होती,
इस पंजाबी उज्जैनी माधवी पुकारते।
उत्तर भारत के हिमालय से बिंध्य तक
और सिंध से लेकर गंगा तक फैली थी।
पाली भाषा संस्कृति विदाई की सीढी,
जिसने उपजाऊ भाषा को नष्ट कर दी।
सुंदरसूत्रों से रक्षित वैदिक कालीन भाषा,
ऐतिहासिक काव्य की भाषा को भी
जो गद्य ब्राम्हणों और अरण्यकों में रक्षित है।
को भारत के लोग पढ़ते और जानते हैं।।
पौराणिक काल में भाषा में बहुत अंतर हो गया,
पाली भाषा की जगह प्राकृत को भाषा बन गई।
पौराणिक काल के समाप्त होने पर एक दूसरा,
परिवर्तन से प्राप्त भाषा बदल कर हिंदी भाषा हो गई।।
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