दौरे कलयुग
कलयुग का यह दौर भी है कैसा निराला,
वाणी में है मनमानी और स्वयंभू मतवाला।
काव्य मंचों पर भी सुख भोग लगाने वाला,
बकवास ही बातों में उसने सबको उलझाने वाला।
खाने पीने की आदत उसने ऐसी ही पाला,
जिसने अपनी लुगाई को भी धमकाने वाला।
जहां भी जाता वहां यही सिखाता बतलाता,
अदल बदल कर कलम की लेख लिखा जाता।
आना जाना ही जीवन का खेल बताता,
जो अपने बस में नहीं वही प्रभु का कहा जाता।
धरती पर आने का वह सबको मकसद सुनाता,
सभ्यता और संस्कृति की शिक्षा से सब को लुभाता।
नाम के लिए नहीं अपने वह ज्ञान की नदी बहाता,
ईश्वर के नाम सब कुछ कर जाना है यही सुनाता।
जो भी आएगा इस धरती पर उसको संदेश सुनाना,
बकवास की बातों में ' मंगल ' कभी ना आना।
- सुख मंगल सिंह अवध निवासी
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