9:01 AM (1 hour ago) |
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" देवी काहे नहीं आतीं"
देवी! बिना बुलाए आतीं
डगर मेरी दिखाती।
कोई तो मोहि बताए
क्यों अब नहीं आतीं।
उनको मेरी व्यथा सुनाए
व्याकुल होकर ढूढ़न ढाए।
फिर भी नहीं उन्हें पाए
दर्शन को मन अकुलाए।
राह सरल मेरी मां बनाए
फिर भी दर्शन देने न आए।
अच्छत पुष्प अर्पित किया
मन्दिर मंदिर मन तन धा ए।
देवी ! बिना बुलाए आतीं
काहे नहीं अब वह आए।
डगर पर कांटे -बबूल के
कौन राह दिखाने मां आए।
कोई जा उन्हें समझाए
माता काहे देर लगाए।
बिना बुलाए ही आतीं
अब भूल हमें समझाएं।
मेरी व्यथा उन्हें समझाए
कोई जा कर उन्हें बताए।
आशा के शव प्राण बन रहे
देवालय में उपवास हो रहे।
देवालय में मन भटकाए
सत्य की अलख जगाए।
ठोकर खाकर बचते हुए
बूढ़ा चिराग सामने दिखाए।
देवी काहे नहीं अब तक आए
डगर पनघट का कौन दिखाए।
व्यवहार विचार विमर्श सच्चा
सच्चा आचरण मन में लाए।
फिर भी दर्शन पूजन किया
डगर मेरी दिखाती जाए।
जो मां बिना बुलाए आतीं
वह देवी काहे नहीं आए।
कोई जाकर उन्हें यह बताए
मेरी व्यथा कथा उन्हें सुनाए।
बिना बुलाए जाने क्यों आतीं
अब बुलाए जाने पर ना आए।
- सुख मंगल सिंह, अवध निवासी
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