"धर्म ने धरा से कृष होने का कारण पूछा"
राजा परीक्षित कुरु जांगल देश में,
सम्राट के रूप में निवास कर रहे थे।
उसी समय सुसूत्रों से सुना उन्होंने
कलयुग उनके साम्राज्य में आ गया।।
युद्ध का अवसर हाथ में लगा जानकर,
हर्षित मन से धनुष हाथ उठा लिया।
दिग्विजय राजा रथ सवार हो बाहर निकले,
सिंह गर्जना से आकाश पाताल में सब राजा कांपे।।
उसी समय उनके साम्राज्य में एक यात्री,
बैल रूप में एक पैर पर घूम रहा था।
बाल रूप में एक पैर पर धर्म खड़ा था,
वह दुखिनी गाय रूपी पृथ्वी से पूछ रहा था।।
उसके नेत्रों से झर झर आंसू झरते देखकर,
धर्म धारण किए बैल ने उससे कारण पूछा।
पृथ्वी क्यों श्री ही न हो रही हमें बताओ और सुनाओ,
मुख मलीन क्यों हो रहा तुम्हारा कारण बतलाओ।।
क्या कोई तेरा संबंधी कहीं दूर चला गया है,
तुम मेरी तो चिंता कहीं नहीं कर रही हो?
मेरा यह तीन पैर, अब जो टूट गया है,
अथवा और कोई कारण हो वह मुझे बताओ।।
क्या राक्षस - सरीखे शरीर के मनुष्यों द्वारा-
सताई हुई स्त्रियों के लिए शोक कर रही!
या कुकर्मी ब्राह्मणों के हाथ विद्या चली गई है -
अथवा ब्राह्मण विरोधी राजाओं के लिए दुख कर रही।।
यज्ञ में आहुतियां नहीं दी जा रही इसलिए दुखी हो,
अकाल में बरसा ना होने के कारण क्या दुखी हो।
राजा आजकल कल योग हो गए ,इसलिए दुखी हो
जिन्होंने बड़े-बड़े देशों को उखाड़ डाला इसलिए, दुखी हो?
तुम राजा या अपने देश के लिए, शोक कर रही हो,
आजकल की प्रजा स्त्री सहवास स्वे छाचार कर रहे, दुखी हो।
धर्म ने कहा मां अब मुझे समझ में आया है,
भगवान कृष्ण की याद में तुम दुखी हो रही हो।।
उन्होंने मोक्ष का अवलंबन लोक जगत में लिया,
भार उतारने के लिए अवतार लेकर लीलाएं किया।
उनके द्वारिका चले जाने लीलाएं सं वरण कर लेने से दुखी हो?
अथवा उनके परित्याग से तुम दुखी हो रही हो।।
क्या कारण है कि तुम इतना दुर्बल हो रही हो गई हो,
माता तुम तो धन - रत्नों की बहुत बड़ी खान हो।
बड़े बड़े बलवान को भी हरा देने वाले काल ने,
देवताओं द्वारा वंदनीय तुम्हारे सौभाग्य को छीन लिया!!
- सुख मंगल सिंह अवध निवासी
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