" ध्रुव और सौतेली मां सुरुचि "
महारानी शतरूपा और स्वयंभू मनु से प्रियव्रत और उत्तानपाद वासुदेव की के पास एक उत्पन्न हुआ।
दोनों लोग संसार की रक्षा में निरंतर लगे रहते थे।
उत्थान पाद की दो पत्नियां थीं। जिनका नाम सुनीति और सुरुचि है। यद्यपि राजा को सुरुचि अधिक प्रिय थी। सुनीति के ध्रुव हुआ। जिससे राजा वैसा प्रेम नहीं करता था।
राजा उत्तानपाद एक दिन स्विच के पुत्र उत्तम हो गोद में लेकर प्रेम कर रहा था उसी समय सुनीति का पुत्र ध्रुव भी उनके गोद में बैठना चाहता था।
डाह बस सुरुचि ने सुनीति के पुत्र ध्रुव से कहा बच्चे तुम राज सिंहासन पर बैठने के अधिकारी नहीं हो। यदि तुम भी राजा के बेटे हो परंतु मैंने तुम्हें अपनी कोख में धारण नहीं किया। तूने किसी दूसरी स्त्री के गर्भ से जन्म लिया है। अगर तुम्हें राज सिंहासन की इच्छा है तू तब एशिया करके परम पुरुष श्री नारायण की आराधना कर उनकी के पास मेरे गर्भ में आकर जन्म ले।-
सौतेली मां के गुरबचन कुटिल
उसने मेरा दिल समझता जटिल!
पिता मौन मुख शब्द रहा कौन
ध्रुव रोते हुए कहा सुनीति मौन।।
सुनीति जी ने अपने बेटे को गोद में उठा लिया। महल के दूसरे लोगों से जब सुरुचि की बातें सुनीं तो सुनीति को बहुत कष्ट हुआ।
सौतन की बातें सुनकर , सुनीति का धीरज टूट गया।-
दावा नल की जली बेल जस, हृदय कमल मुरझाने लगे।
बेटा से मां बोल पड़ी, ध्रुव नें गहरी सांसें भरी।
'मंगल' की कामना सदा करना, कर्म फल भोग भुगतना।
सुरुचि ने जो भी कहा , वह ठीक ही है कहा।-
राजा मुझे पत्नी क्या दासी समझने में लज्जा करते हैं।
बेटा राज सिंहासन पर अगर बैठना चाहता है तो -
द्वेष भाव को छोड़कर सुरुचि जी की आज्ञा का पालन कर !
श्री भगवान की कमल चारण की, आराधना में तू लीन होजा।
श्री हरि के चरण कमल में वंदना आराधना करने से तेरा !
मेरे परदादा ब्रह्मा को वह सर्वश्रेष्ठ पद प्राप्त हुआ था ।
तेरे दादा स्वयंभुव मनु ने यज्ञ भगवान की आराधना की,
तभी उन्हें अति दुर्लभ अलोकिक मोक्ष सुख की प्राप्ति मिली।
तू भी भागवत वत्सल भगवान का आश्रय ले लो ,
उन्हें ही निरंतर मुमुक्ष लोग खोज किया करते हैं।
सब चिंता छोड़कर उन्हीं का तुम भजन- यजन कर,
उन्हें प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मा आदि सभी
देवता ढूंढा करते रहते हैं|
श्री लक्ष्मी जी भी हाथ में दीपक लिए हरि को खोजा करती हैं।
तेरे दुख को दूर करने वाला उसके अलावा दिखता नहीं है कोई ।
मां का वचन सुनकर ध्रुव ने बुद्धि द्वारा निज चिंतन किया।
इसके तुरंत बाद ही वह अपने पिता के नगर से निकल पड़ा।
ध्रुव मार्ग में देव ऋषि नारद जी तत्क्षण उनसे मिलने आए
बालक के सिर पर पाप नाशक कमल फेर के विस्मित हो बोले।
नन्हें बालक के अंदर सौतेली मां का कटु शब्द घर कर गया।।
बेटा से मां तब बोल दिया,
ध्रुव नें गहरी सांसें भरी!
श्री हरि के चरण कमल में,
वंदना- आराधना तू कर!
बालक के अंदर सौतेली मां का कटु शब्द घर कर गया?
ध्रुव निकल पड़ता है |
- सुख मंगल सिंह
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Sukhmangal Singh
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