Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

एक मां की व्यथा

 

एक मां की व्यथा


मुझे अगर लिखने आता तो मैं भी
अपने मन की सारी व्यथा लिख देती
सोचती थी बुढ़ापे में तीर्थ यात्रा करूंगी
जीवन में मेरी कोई साध पूरी नहीं हुई। 

पुत्र बोला तीर्थ उन्हें करना चाहिए जो
अपने जीवन में पाप करते रहते हैं
जिसने पाप किया है तीर्थ होने के लिए
यह सुनकर मां की आंखें चमकने लगीं। 

तुमसे ऐसा वाक्य सुनने की उम्मीद ना थी
मुझे पुराने जन्मों के पाप धोने बाकी हैं
मेरे उस जन्म के पाप अभी तक मौजूद हैं
मैं उन सभी पापों को धो डालना चाहती हूं। 

यदि तुम मेरे इन विचारों से सहमत नहीं हो
तो इसमें मेरा कोई दोष नहीं हो सकता है
वर्तमान समय और काल स्थिति का प्रभाव 
मानव विचारों को स्वस्थ नहीं रहने देता है। । 
- सुख मंगल सिंह

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ