एक मां की व्यथा
मुझे अगर लिखने आता तो मैं भी
अपने मन की सारी व्यथा लिख देती
सोचती थी बुढ़ापे में तीर्थ यात्रा करूंगी
जीवन में मेरी कोई साध पूरी नहीं हुई।
पुत्र बोला तीर्थ उन्हें करना चाहिए जो
अपने जीवन में पाप करते रहते हैं
जिसने पाप किया है तीर्थ होने के लिए
यह सुनकर मां की आंखें चमकने लगीं।
तुमसे ऐसा वाक्य सुनने की उम्मीद ना थी
मुझे पुराने जन्मों के पाप धोने बाकी हैं
मेरे उस जन्म के पाप अभी तक मौजूद हैं
मैं उन सभी पापों को धो डालना चाहती हूं।
यदि तुम मेरे इन विचारों से सहमत नहीं हो
तो इसमें मेरा कोई दोष नहीं हो सकता है
वर्तमान समय और काल स्थिति का प्रभाव
मानव विचारों को स्वस्थ नहीं रहने देता है। ।
- सुख मंगल सिंह
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