हस्त खेह तन पर डारे मगचलता है मतवाला मनहरि पद रज से तरी अहिल्याउसे ढूंढ रहा त्रिशूल धारीनाथ बिना पग धोये हमपार ना उतरे हौं गंगा।
हस्त खेह तन पर डारे मग
चलता है मतवाला मन।
तुम्हारी पग छुने से देखाप्रस्तर बन गई नारी।काठ की नैया मेरी रघुवरजो बन जाएगी नारी!
हस्त खेह तन पर डारे मग
चलता है मतवाला मन।
कैसे पेट भरूंगा बच्चों कासंसारिक संसय बहुत है भारीआज्ञा दीजिए चरण पखारेंभरकर लाऊं कठौती पानी।
हस्त खेह तन पर डारे मग
चलता है मतवाला मन।
पग पछवत में नाच उठी कठौतीपग धोवत है कल्याणी?
सोई पद ग्रहण निषाद करत हैंकुटिया कुटिया निषाद की रानीकटत नाथ मिट गए दारू दुखमंगल मन में सुख मंगल तानी।
हस्त खेह तन पर डारे मग
चलता है मतवाला मन।।
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