Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हरि पद छुवत नारी तरी

 
हस्त खेह  तन पर डारे मग
चलता है मतवाला मन
हरि पद रज से तरी अहिल्या
उसे ढूंढ रहा त्रिशूल धारी
नाथ बिना पग धोये हम
पार ना उतरे हौं गंगा। 
        हस्त खेह तन पर डारे मग
        चलता है मतवाला मन। 
तुम्हारी पग छुने से देखा
प्रस्तर बन गई नारी। 
काठ की नैया मेरी रघुवर
जो बन जाएगी नारी!
       हस्त खेह तन पर डारे मग
       चलता है मतवाला मन। 


कैसे पेट भरूंगा बच्चों का
संसारिक संसय बहुत है भारी
आज्ञा दीजिए चरण पखारें
भरकर  लाऊं कठौती पानी।
       हस्त खेह तन पर डारे मग
       चलता है मतवाला मन। 
 

पग पछवत में नाच उठी कठौती
पग धोवत है कल्याणी? 

सोई पद ग्रहण निषाद करत हैं
कुटिया कुटिया निषाद की रानी
कटत नाथ मिट गए दारू दुख
मंगल मन में सुख मंगल तानी।
        हस्त खेह तन पर डारे मग
        चलता है मतवाला मन।। 

     


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