हे धरती मां
सुषमा मंण्डित जीव तरंगिनि
हे धरती मां! तुम्हें प्रणाम।।
तीनों ऋतुओं की किलकारी
गूंजा करती बारी-बारी
पल -पल पोषित होता जीवन
धरा स्वर्ग है जग से न्यारी।
तेरे नीर -अन्न अमृत सम
प्राण वायु का चक्र ललाम
सुषमा मंण्डित जीव -तरंगिनि
हे धरती मां!तुम्हें प्रणाम।
देव -धाम कहलाती अवनी
पूंजी जाती जग में जननी
यहां प्रलय में तेरा ही थल
है कैलाश बिहंग बिहंगिनि।
सहज -स्नेह -सद्भाव- विभूषित
अन्जानों का 'मंगल' धाम
सुषमा मंण्डित जीव- तरंगिनि
हे धरती मां! तुम्हें प्रणाम।।
- सुख मंगल सिंह
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