Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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होली आई भाई

 

" होली आई भाई"


खुश रखो जी इन स्वामियों को
इनकी भी अपनी जुबान होती
बात करते हैं जगत में प्रेम की
हौसले बुलंद आवाज भी उठती।

दिल की धड़कन बढ़ने पर कोई
खुदको जगा रहा था जबरन लोगों
बात कुछ हजम करने वाली शिक्षा
दे दिया न्यौता भेजा था खुद उसने।

फागुन मास की आवश्यकता होती
नई नवेली दुल्हन बनी धरती हिलती
पतझड़ की यात्रा आने वाली पीढ़ी
दरसल जीवन शैली सुगम भटकती।

रंग बिरंगी एकता अखंडता संप्रभुता
पेड़ो से चिपक पात अवनि पर पड़ते
वहीं परंपरागत खेती लाते खुशहाली 
 बूढ़े बच्चे होली मस्ती में झूम उठते

भागुन मास  बदन में सिहरन सी दौड़
भौजी की आंखों में समुद्र मंथन कौण
झूम उठे सवालों के उत्तर चरित्र गौण
छाई घटा काली चादर ओढ़ लिया मौन

तेज बढ़ता जाता ध्यान रखना पड़ता
मस्त जवानी की दहलीज पार करना
रंगों का त्योहार होली आई है कहता
पिचकारी छोड़ने की कोशिश करती।

लाल गुलाल जल मिलाकर सेवन करते
पुराने मित्रों की खोज में निकल पड़ते
सभी  गाते गीत इठलाता मस्त होकर
मानों नाचती - गाती मयूरिन खेतों में।

तरह तरह के व्यंजन मिष्ठान्न पकवान
बनता खीर पूड़ी गोझिया औ नमकीन
प्रेम सरोवर में डुबकी की होती है जीत
होली मस्ती की बंद पाठशाला है मीत ।

सुख मंगल सिंह अवध निवासी

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