Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जय हिंद धरा न्यारी

 

जय हिंद धरा न्यारी

जय जग- जन- हितकारी
खेला करती ऋतुएं
देश स्वर्ग छठ- प्यारी।।

चहुं दिस ' मंगल' कलरव
अविजित रश्मिल अभिनव
चित्ताकर्षक- झांकी
देती रजनी नीरव।।

रिश्तों की डाली पर
सजती नित फुलवारी
खेला करती ऋतुयें
दे स्वर्ग छटा प्यारी।।

इसकी गौरव गाथा
झुकते हैं कोटि माथा
अर्पिततन अनद्यतन कर
गाते पावन गाथा।।

बलिदान भरा जीवन
जौहर व्रत चिंगारी
खेला करती ऋतुयें
 दे स्वर्ग छटा प्यारी।।
- सुख मंगल सिंह
शब्दार्थ-
अनद्यतन - आज का या आधुनिक ना हो।
भविष्य-आगामी आधी रात के बाद का समय।
भूत- व्याकरण में अर्धरात्रि से पहले का समय।



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