"करगिल विजय दिवस"
पर विशेष रचना!
उधर देश में नारे लगते,
तुम सोते वह जगते!
गहरी नींद में तुम होते,
भर रात वे जगते रहते।।
भर पेट तुम खाते पीते,
पानी के लिए वे तरसते।
तुम्हें हिटर - गीजर पर
वे बर्फ पर खेल खेलते।।
तुम महलों में हो रहते,
जंगली जीवन वे जीते।
मानवता को कुचल रहे
समता को अपने गढ़ते।।
झूढ़े बातों में भरमाते,
सच को वे सब मरते।
तू मंदिर - मस्जिद करते,
नीरा आकाश वे रहते।।
बकवास की बात करते
देश हित में वह जीते।
स्वार्थ खोजते रहते हो
धरा को वे मां समझते।।
अपनों से ही जलते हो
वह सबको अपनाते।
खुद को भी छलते हो
वे सबकी सेवा करते।।
तुम धनदौलत पर मरते
तिरंगे पे वे थिरकते।
तुम जान बचाते फिरते
जवान देश हित करते।।
- सुख मंगल सिंह
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