"कौआ श्राद्ध खाने नहीं आता"?श्राद्ध पक्ष में कौए उनके हाथ से तभी से खाना छोड़ दिया।पिता को उठाने बैठाने से बेटो ने जब से मुख मोड़ लिया।।मानव पीपल, पाकड़, बरगद काटकर प्रदूषण फैलाना शुरू किया।पक्षियों के रहने और खाने में खलल डालकर उनका मुंह सिया।।पक्षियों को दाना पानी देने से ही मानव जन्म अच्छा मिलता।प्रकृति संतुलित रखने में महत्वपूर्ण कौआ किरदार निभाता।।लगातार दूषित होते पर्यावरण में कौवे ने दुख जताया।दूषित भावनाएं मानव की देखकर कौआ खाने नहीं आया।।दुनिया से पक्षियों की आबादी लगातार ही घटती जाती।घर की मुड़े रे से शगुन भरी कांव-कांव आवाज नहीं आती।।पुरानी मान्यतानुसार कौए का शरीरऔषधीय काम आता।भूत - प्रेत जैसी विपदा के भी प्रयोग में लाया जाता ।।महारानी के नौलखा हार को भी पहुंचाने का यत्न करता।मरे हुए जानवरों का कौआ मांस खाकर भी जीवन बिताता।।सत्य निष्ठ होकर आचार विचार से कोई श्राद्ध नहीं मनाता।इसीलिए परंपरागत कौआ श्राद्ध खाने भी नहीं आता।।ध्वनि प्रदूषण फैला कर पितरों के लिए जबसे मंत्र पढ़ा जाता।और गड्डियों से यजमानों के पितरों का श्राद्ध कराया जाता।तीर्थ - पुरोहित यजमान से पितरों को कित्रिम आहार दिलाता।धरती पर कौआ तभी से ही श्राद्घ भोजन खाने नहीं आता।।- सुख मंगल सिंह
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