" काया माटी में मिल जाती"
धरा ही माटी है
शरीर की साखी है।
धरा से शरीर आती
फिर धरा - मिल जाती!
काया को माटी भाती
माटी विकसित बनाती
गंध सुगंध भान कराती
काया माटी में मिल जाती।
तुम्हारे घर आकर सबको
पाकर काया झंकृत करती
माटी- रचना की सुनाती
फिर उसी में मिल जाती।
तेरी खातिर धरा पर आयी
काया झंकृत गीत सुनाइ।
पांच तत्व से बनी रसोई
फिर उसी तरह मिल जायी।
मां के चरणों की दासी
स्वर्गलोक की है माटी
काया यह केवल काठी
वह माटी में मिल जाती।
नव माह गर्भ धारण कर
वर्षों तलक मा सिखाती
ककहरा से मानव शरीर
तक सालों साल पिलाती।
माटी की महक राष्ट्र भक्त पहचानता
देश हित में प्रभावी कदम को जानता
सीमा पर तैनात सिपाही बनकर वह
सुरक्षा व्यवस्था की हालत को मानता।
वरिष्ठता सूची का ध्यान नहीं करता
वस्तु स्थिति का आंकलन में रहता
प्रतिपल तन्मयता से सीमा देखता
सीमाओं की रक्षा और सुरक्षा करता।
जो पुत्र मा को प्यार नहीं देता
हांफ - हांफ कुंठा मा मरता
युगों - युगों की साधना कहता
मंगल स्वर्ग चरणों में मिलता।
- सुख मंगल सिंह अवध निवासी
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