निज लीला से बने मानव
मोहित किया मात पिता
उठा लिया गोंद में माता
परमानंद तब मिलने लगा।
मोह पाश में बधी है माता
निकली आंसुओं की धारा
रुधे कंठ से बोल न पाती
अभिषेक की थी वह धारा।
श्री कृष्ण ही विश्व विधाता
कंस उनसे ही मारा जाता
भय से व्याकुल हो जाता
इधर - उधर दौड़ लगाता।
सजातियों को वह बुलाता
घर के बाहर उन्हें ठहराता
भगवान सरकार करवाता
अपने घर में कृष्ण बसाता।
चरण स्पर्श से खुश हो जाता
श्री कृष्ण जी का गुण गाता
उन्हें आनंद सदन दिखलाता
कभी नहींं मन फिर कुम्हलाता।
मथुरा नगरी आनंद मनाती
वृद्धों पर जवानी छा जाती
मुख़ारविंद का पान करते
अपने घर में आनंदित होते।
श्री कृष्ण - बलराम जी आते
नन्द बाबा को पास बुलाते
कुछ कहने का मन बनाते
नन्द बाबा के गले लिपट जाते।
आपने बाबा - मान यशोदा
स्नेह दुलार से बलदाऊ मेरा
लालन - पालन दोनों ने किया
आपने! संतान का सुख दिया।
आपने ही है हमको पाला
हम आपका असली लाला
अब वात्सल्य स्नेह भुलाना
हमें धरा को सुख पहुंचाना।
आदर दे व्रज में था लौटाना
व्रज वासियों को था समझाना
उनके आंसू पर था मुस्काना
नन्द बाबा को भी था मनाना।
दोनों पुत्रों का यज्ञोपवीत कराना
ब्राह्मणों को प्रदक्षिणा दिलवाना
नन्द बाबा को था कर्तव्य निभाना
कंस के अन्याय से मुक्ति दिलाना।
कृष्ण - बलराम की कथा जो सुनेगा
निर्मल ज्ञान उसको ही है मिलेगा
भगवान की मनुष्य लीला जो सुनेगा
भव से पार पाने का रास्ता मिलेगा।
- सुख मंगल सिंह,अवध निवासी
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