Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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लीची पर लोचा

 

लीची पर लोचा


समय कब क्या करा देवे ,कहा नहीं जा सकता
कभी भिखारी व्यक्ति वह भी राजा बन जाता है। 
पत्थर ही तो नित पानी को राह दिखाने वाले होते
योद्धा ही तूफानों से नित भिड़ जाने वाले होते हैं। 
कलम के योद्धा कविता में निखार लाने वाले होते
जो भी बाधा राहों में आए उनसे वीर लड़ जाते हैं। 
कांटे ही तो नित फूलों का माल बताने वाले होते
धर्म आचरण करने वाले अधर्म धर्म कीमत समझाते। 
समय कब क्या करा देवे, कहा नहीं जा सकता  
कभी भिखारी व्यक्ति वह भी राजा बन जाता है। ।
 
तेज बहादुर निज लीची के बृक्ष पर निगाह रखता
फल आने से पकने तक वह पेड़ के नीचे रहता है। 
टूटी चारपाई पर लेटे-लेटे कहनियों को निहारता 
हरी भरी पत्ती और फलों से लगी हुई उसकी डालें। 
दिन - दिन बीतते गए फलों में लाली बढ़ती गई: 
 उधर से जो जावे उनके मन देख लीची ललचाता। 
कौवे और चमगादड़ से लीची को बचाने के उपाय
रंग-बिरंगे सूत से एक जाल तेज बहादुर ने बनवाया। 
समय कब क्या करा देवे, कहा नहीं जा सकता
कभी भिखारी व्यक्ति वह भी राजा बन जाता है। 

लीची को मंजरियों से लदी देख जाल से ढकवाया
लाल ठोर लिए हरे पंख वाले कबूतर छुपे रहते।
ललाई चाहे लीची के गुच्छे की या सिंदुरिया आम 
देख के उन्हें मानव हृदय बरबस गदगद हो जाता है।
तेज बहादुर का पड़ोसी उस  भिखारी का लड़का 
जिसने तेज बहादुर के यहां  नौकरी पेशा में रहा था। 
उसकी तीखी निगाहें लीची पर गडी गड़बड़ सोच
उसने लीची पर लोचा खड़ा करने का प्रयास किया। 
 समय कब क्या करा देवे कछु कहा नहीं जा सकता
कभी भिखारी व्यक्ति वह भी राजा बन जाता है।। 

मानव को मन पर नियंत्रण रखना सबसे जरूरी होता
सब कुछ छोड़कर यहीं जाना फिर लोभी क्यूँ कहवाते।
अपने ही निज गांव में कौतूहल बस कोसे जाते हो
मातृ पितृ के कर्ज से मुक्त नहीं हो पाते हो घबराते हो। 
लुचु लफंगों क साथ कर अपनों की निगाह से गिर जाते
हृदय की मुलायमियत खोकर कटु  कठोर बन जाते हैं। 
व्यर्थ बुरे  कामों में अपना  अमूल्य पल गुजारते रहते हो
अनुशासन और विनम्रता से भी दूर होते जाते रहते हो।
समय कब क्या कर देवे कुछ कहा नहीं जा सकता
कभी भिखारी रहा व्यक्ति वह भी राजा बन जाता है । ।
- सुख मंगल सिंह


 



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