मधुरस
निज कृति से कवि मन हरता है
अपने संग्रह में मधु रस भरता है।
है रीति - नीति में बेशुमार यह
जिनमें लय ताल छंद अपार है।
कहीं न रचना में लंद - फंद है
उदित गगन में ज्यों तरंग है।
अलंकारों से ओर- छोर ढला है
इसमें ध्वनि - व्यंग भरा है।
सजी-धजी है फूलों की क्यारी
माटी की सुगंध है न्यारी।
कविता में कवि ने कसा बंद
कितना कहूं स शास्त्री रंग।
कवि कृति से सबका मन हरता
धरनी सुता से जी ना भरता है।
ता पर शक्ति चालीसा गाया
दुनिया के हृदय हर भाया।।
- सुख मंगल सिंह
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