Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मधुरस

 

मधुरस


निज कृति से कवि मन हरता है
अपने संग्रह में मधु रस भरता है।

है रीति - नीति में बेशुमार यह
जिनमें लय ताल छंद अपार है।

कहीं न  रचना में लंद - फंद है
उदित गगन में ज्यों तरंग है।

 अलंकारों से ओर- छोर ढला है
 इसमें ध्वनि - व्यंग भरा है।

सजी-धजी है फूलों की क्यारी
माटी की सुगंध है न्यारी।

कविता में कवि ने कसा बंद
कितना कहूं स शास्त्री रंग।

कवि कृति से सबका मन हरता
धरनी सुता से जी ना भरता है।

ता पर शक्ति चालीसा गाया
दुनिया के हृदय हर  भाया।।

- सुख मंगल सिंह


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