"मगध साम्राज्य का संक्षिप्त इतिहास "
ऐतिहासिक काव्य काल के ग्रंथों से ज्ञात होता है कि प्राचीन समय में भी राजाओं और उनके वंश, वंश परंपराओं
का इतिहास रहा है। जिसे इतिहास पुराण के नाम से जाना गया। प्राचीन काल में जुबानी कथाओं के द्वारा सभ्यता,
संस्कृति ,इतिहास पुराण रक्षित रखे जाते थे। जिनमें प्रत्येक शताब्दी में दंतकथाएं मिल जाती थी। उनदंत कथाओं
को आज भी पुरोहितों दादा- दादी और प्राचीन लोगों के माध्यम से हम ग्रहण करते हैं। पुराणों के अध्ययन से दंत
कथाओं और इतिहास पुराण को आत्मसात किया जाता था।
आज जो इतिहास पुराण वर्तमान है वह पौराणिक काल में बनाए गए थे| जिसमें मुसलमानों की भारत पर विजय
के बाद काफी परिवर्तन हुए हैं। उस काल में इतिहास पुराण में बहुत सी बातें बढ़ाई गई हैं जो उनके पक्ष में बयां
करती हैं।
छांदोग्य उपनिषद में नारद कहते हैं 'महाशय ! महाशय मैं ऋग्वेद , यजुर्वेद, सामवेद, और चौथे अथर्ववेद, पांच में इतिहास पुराण के इतिहास को जानता हूं।' (७-१-२)
पुराणों में कौशल के राजवंश को सूर्यवंश और कुरू लोगों को चंद्रवंश कहा गया है। पुराणों के अनुसार कुरु पांचाल
युद्ध के पहले सूर्यवंश के 93 राजाओं ने राज्य कर लिया था और चंद्रवंश के 45 राजा हो चुके थे। ऐसा कहा जाता है
कि सूर्यवंश की एक शाखा से चंद्रवंशी की उत्पत्ति हुई। अर्थात सूर्यवंशी और चंद्रवंशी की शाखा चली। पुरातत्व
सर्वेक्षण, पुराण इतिहास के अध्ययन से भारत वर्ष के इतिहास के ऐतिहासिक काव्य काल को 2500 भी पूर्व-
से 1000 ईसवी पूर्व का माना जा सकता है यानी कि 3000 ई सवी पूर्व में स्थिर किया जाना चाहिए।
सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजाओं की जो सूचना दी गई हैं वह अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण हैं परंतु कार्यकाल में
सामंजस्य की पूर्व के लिए इतिहास वेत्ताओं को और अध्ययन करने की जरूरत है। यद्यपि यह अध्ययन
गंभीरता पूर्वक किया गया है परंतु और अध्ययन करने की आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता।
विभिन्न विद्वानों ने जिसमें अंग्रेजी के विद्वान भी सम्मिलित हैं हमारे इतिहास पुराण वेदशास्त्र का गंभीरता से अध्ययन किया है। बहुत से प्रसिद्ध विद्वानों ने काफी खोज की है। खोजकर्ता विद्वान डॉ एच एच विलन साहब ने
अंग्रेजी जानने वालों के लिए विष्णु पुराण का अनुवाद अंग्रेजी में किया।
सूर्यवंशी राजाओं में रामायण के नायक राम का नाम आता है और चंद्रवंशी राजाओं में महाभारत काल के पांचों
पांडवों के नाम मिलते हैं जिसे अंकित किया गया है। चंद्रवंश में हमें राज्य अंग, बंग, कॉलिंग शुंभ और पुंद्र के नाम
मिलते हैं। जो वास्तव में बिहार, पूर्वी बंगाल उड़ीसा, टियारा, उड़ीसा और उत्तरी बंगाल के नाम है।
सन 2015 से 18 के बीच उड़ीसा के डेकनाल मेरे दौरे के दौरान लोगों से ज्ञात हुआ कि पूर्व काल में उड़ीसा में
चंद्रवंशी राजाओं का राज्य था| ढेकानाल, ओडिशा में पूर्व काल से चंद्रवंशी राज्य के राजा का भवन मिलते हैं।
चंद्रवंशी राजाओं का इतिहास उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों में फैला हुआ भी प्राप्त होता है।
ग्रंथकार अपने समय में अपने देश मठ मंदिर ऐतिहासिक स्थान धरोहर आदि को इतिहास में अंकित किया करते
थे। इतिहास पुराण को पुजारी उसमें मसाला लगाकर और उसमें कुछ अंश अपना जोड़कर प्रस्तुत किया करते थे|
विषय वस्तु में दंतकथाओं के मिश्रण भी मिलते हैं फिर भी वह बहुमूल्य है।
दार्शनिक तथा बौद्ध काल में मगध का राज्य भारत वर्ष की सभ्यता का केंद्र था। इसीलिए इस राज्य के वर्णन
वर्णन में बहुमूल्य बातें मिलती हैं। मगध राज्य में बहुत प्रबल राजा हुए उन राजाओं में प्रबल राजा के रूप में एक
नाम जरासंध राजा का आता है।
मगध राजाओं के विषय में बृहदपुराण , वायु पुराण, भागवत पुराण, मत्स्य पुराण और विष्णु पुराण में भी वर्णन
मिलता है। प्राचीन काल की काल गणना और आज की काल गणना में विभेद होना स्वाभाविक है पहले छुट्टियों
के आधार पर काल गणना काल खंड इतिहास आदि का संकलन दंतकथाओं के माध्यम से मिलता है।
भारतीय राजाओं के कालका काल खंड में भूल चूक भी होना स्वाभाविक है।
मगध राजाओं की वंश परंपरा-
शिशुनाग वंश के 5 राजाओं में प्रद्योत, पालक, विशाषयूप, जनक और नंदिवर्धन थे। प्रद्योत वंश के राजाओं में कुल मिलाकर 138 वर्षों तक पृथ्वी पर राज्य किया।
वही बृहद्रथ वंश के अंतिम राजा रिपुंजय हुआ जो अपने ही सम्राट को मार कर प्रद्योत न को राजगद्दी पर बैठाया।
इसके बाद शिशुनाग वंश के राजा हुए व्शिशुनाग वंश के महानंदिन अंतिम राजा हुआ इस वंश के सभी 10 राजाओं
का कार्यकाल 365 वर्ष का पृथ्वी पर रहा।
बृहदरथवंश, प्रद्योतवंश, शिशुनागवंश, नंदवंश, के सभी आठ पुत्रों, मौर्य वंश, संगवंश, कण्ववंश, और अंध्रवंश के
राजाओं ने पृथ्वी पर राज्य किया। पांचवी शताब्दी में मगध राज्य का पतन हो गया अंध राजाओं के पीछे अनेक आक्रमणकारी विदेशी जातियों ने आक्रमण कर दिया और मगध को छिन्न -भिन्न कर दिया इस प्रकार विविध
जातियों के राजाओं ने पृथ्वी पर राज्य किया।
इस राज्य पर राज करने वाले राजाओं में से तीन से सात आभीर जाति के राजा ने राज्य किया और दस राजा
गर्ध मिल थे। सोलह शक राजा । आठ यमन राजा और ग्यारह मौन राजाओं ने पृथ्वी पर राज्य किया।मगध
साम्राज्य भारत का महत्व पूर्ण राज्य था मगध साम्राज्य के लोग पराक्रमी योद्धा, पुरुषार्थी और धैर्य वान होते थे।
प्राचीन भारत में राजा न्याय प्रिय होते थे।राजा अपने साथ विद्वान ब्राह्मणों और रणभूमि मंत्रियों के साथ
लेकर न्यायालय में जाता और न्याय करता। राजा प्रजा की रक्षा करता पक्षपात रहित होकर न्याय करता
अनुचित करने वालों को दंड देता |
अपने कर्तव्यों का पालन करता। प्राचीन काल में राजा रात्रि के अंतिम बार में होता था नित्यक्रिया कर्म करने
के उपरांत स्नान ध्यान करके अपना मन करता तदुपरांत सभा भवन में जाता था। राजा से जो लोग भेंट करने
आते हैं उन्हें राजा प्रसन्न रखता था। उन्हें विदा करने के उपरांत मंत्रियों से सलाह मशविरा करता। राजा
निमिया मान व्यायाम करता स्नान करने के बाद माल में जाता और नमक हलाल नौकरों द्वारा तैयार किए
गए भोजन को मंत्रों के द्वारा शुद्ध करके पाता था।
राज्य प्रबंध के लिए राजा की सहायता के लिए मंत्री होते थे जिनमें शास्त्र ज्ञाता विद्या में निपुण, शिल्प कला
में निपुण होते थे। नगारा और गांव दोनों की रक्षा करने के लिए अलग-अलग कर्मचारी नियुक्त किए जाते थे
राजा प्रत्येक गांव का एक स्वामी रखता था और 10 गांव के ऊपर भी एक स्वामी हुआ करता था। 100 गांव
पर भी एक स्वामी होता था और 1000 गांव के ऊपर भी एक स्वामी नियुक्त करता था। इन स्वामियों को ग्राम
के निवासियों की रक्षा करने के लिए तथा जुर्म करने वालों को रोकने के लिए कार्य सौंपा जाता था। प्रत्येक नगर
में भी एक सरदार होता था जो स्वयं कर्मचारियों के कार्य की देखभाल करता था उनकी चाल व्यवहार के विषय
में गुरप्रीत से पता रखता था।
सहारा और गांव दोनों ने विचार रखे जाते थे जो प्रजा की सारी समस्याएं सुख दुख राजा तक पहुंचा देते ।
शिक्षा व्यवस्था के लिए गुरुकुल हुआ करता था धर्म की शिक्षा के लिए मंदिरों और मठों में बिना रोक-टोक के
शिक्षा दी जाती थी लोग बिना किसी अत्याचार वह हस्तक्षेप के अपना अपना कार्य करते थे परोपकारी राज्य
प्रणाली से कार्य हुआ करता था राजा और कर्मचारी दोनों दयालु हुआ करते थे और एक दूसरे पर विश्वास
दिलाने वाले होते। रक्षा के लिए किलो की किलेबंदी की जाती थी जिले में धनुष चलाने वाले और शत्रुओं से
मुकाबला करने के लिए तरह तरह के हथियार रखे जाते। सड़कों के किनारे धर्मशाला ओं का उन दिनों
प्रचलन था जगह जगह कूट बनवाए जाते। वृक्ष लगवाए जाते पशुओं ब्राह्मणों शिल्पकार ओं आज की
भली-भांति रक्षा की जाती । उन दिनों युद्ध के नियम सदा से संस्कार योग्य होता था । रथ- घोड़ा ,हाथी
अन्य किसी वस्तु को युद्ध में जीते जाने पर जीतने वाले के हो जाते थे । भागते हुए को मारना बर जित था ।
गिरे हुए शत्रु को भी मारना बरजित था ।मैं तुम्हारे अधीन हो गया हूं कहने वाले की रक्षा की जाती, शस्त्र
विहीन मनुष्य के ऊपर आक्रमण नहीं किया जाता था। युद्ध के नियमों का पालन किया जाता था।
- सुख मंगल सिंह,अवध निवासी
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