माई क ममता
नव माह दुखत पहाड़ ले के ढोवैलीं
अंगुरी के पोरवा से भूमि नाप देवेलीं
लाल धन उपजा के मान ई बढा वैली
पीडा़ सहि केतना ई बेटा जनमावैली।
अपने त ओद सूत रतिया बितावैलीं
बेटवा सुताई झूर सीत ई गुजारैलीं
ममता दुलार क ई सागर बरसावैली
अंचरा के छांव माई ललना सुतावैलीं।
अमृत क धार माई मुंह में पियावैलीं
लाल जनमा के माई पहारू बनावैलीं
जान ई हथेली ले के हीरा उपजावैलीं
छतिया बजर कई धीरज धरावैलीं।
देशवा के सीमवा पे पहरू सजावैलींं
अपने करेजवा पे पथरै दबावैलीं
बेटवा के सुख पुनि माई नाहीं पावैलीं
'अनपढ' शहीद भइले लोलवा बहावैलीं।।
रचनाकार- तेज बाली अनपढ़
टनकपुर ,चकिया, जनपद चंदौली
संकलनकर्ता -सुख मंगल सिंह
नोट -पहाड़ों की वादियों के झुरमुक से अनपढ़ का निकला यह गीत हमें उम्मीद है आप सभी को पसंद आएगा!
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