| Wed, Jul 28, 3:53 PM (14 hours ago) |
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" मन सदाशिव जप"
हे यक्ष क्यों पीछा करता, तुम पीछे मुड़कर नहीं देखता,
सदाशिव का भक्त ठहरा, मन शिव शंकर रमता है।।
शिव निर्गुण, निराकार,निर्विकार, सत्व रूप,
सूक्षमात सूक्ष्म, महा सुख, ज्ञानदीप, ज्योतिर्मय है।
महा ज्योति, अलौकिक ज्योति, सदानंद, महानंद है,
वेदगामी, सर्व स्वतंत्र, परम धाम और निरा लंब है।।
रूद्र रूप शिव साथ हमारी यक्ष दु:ख क्यों किया है,
हे यक्ष प्रश्न पर बोलो, तू उससे क्यों नहीं डरता है।
रूद्र की पूजा मैं करता, राक्षस - देवता समान जिसको,
पी जाते हला हल जो, देवाधिदेव बड़े महान हैं।।
पूर्ण साकार रूप सदाशिव, होता सदा शंकर का गान,
अंग भभूत नाग गले में माल, कर त्रिशूल, डमरु दू साला ।
यक्ष क्लेश नाशक शिव, दु:ख रहित उसका भत्ता,
शिव भक्ति में शक्ति प्रबल, यूं नहीं जाता यक्ष बता।।
अकाल काल की विकराल पर, शिव मंत्र सदा आभारी पड़ता,
मृत्यु ताप से सदा बचाता, असर बुरा नहीं पड़ता।
ऋणानुबंध होने पर ही, शिवा नुग्रह प्राप्त होता,
शिव संकल्पित मानव ही, शिव आराधना मिलता है।।
शिव और सदाशिव का जो, कहकर नाम जो जपता,
महा पाप उसका असर, भक्त के ऊपर नहीं पड़ता।
दया हम पर नहीं दिखाओ, हम तो बस के भक्ता,
डमरु और पाश से शिव, शंकर दुश्मन का हंता।।
शिव तांडव को जगत जानता, त्रिशूल - पाश पापी डसता,
दम डम डमरु जब बजता, अविनाशी भी दौड़ करता।।-
' मंगल ' एक प्रसंग देवताओं- असुरों के महासंग्राम का सुनाता,
विजय देवताओं की हुई, मेरी वजह से अग्नि,इंद्र ,वायु बताता।
शिव गर्व नाश कर नीचे कारण यह यक्ष रूप धरा था,
जीवदानी यक्ष का पता लगाने अगली को भेजा सा।।
अग्नि यक्ष के प्रभाव के कारण तीनका जला नहीं सका,
उसी समय वायु भी एक तिनका हिला नहीं पाया था।
अग्नि का तेज और वायु का बेग जब तिनके का कुछ कर नहीं पाया,
इंद्रेश यक्ष के पास जाने का असफल प्रयास आजमाया।।
यक्ष वहां से अदृश्य हो गया, पार्वती को वहां पाया,
वहां पार्वती को देख कर, इंद्र देवी से पूछना चाहा।
देवी पार्वती जी द्वारा अदृश्य का रहस्य उसने जाना,
विजय दिलाने वाले यक्ष रूप, परम शिव ही है पार्वती ने बताया।।
- सुख मंगल सिंह
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