"मंदोदरी विभीषण की पटरानी कैसे बनी"
कैलाश पर्वत पर शिव को रिझाने,
राक्षसी मधुरा चली उन्हें फसाने।
भूत भावन शिव शंकर जी पर
अगाध प्रेम मधुरा लगी दिखाने।
मधुरा की प्रेम में विहवल हो कर
शंकर उसके साथ दृश्य करने लगे।
मधुरा राक्षसी के ऊपर शिवजी के
शरीर पर लगे भस्म गिरने लगे।
उसी समय माता पार्वती का वहां आना हुआ,
देखकर यह अलौकिक दृश्य पार्वती को रूठ जाना हुआ।
माता पार्वती नेम अधूरा को श्राप दे दिया,
मेघची बनकर मथुरा कूप में चला जाना हुआ।
12 वर्षों तक मग्गा को कुएं में बिताना पड़ा,
माया सुर - हेमा राक्षसी के दो पुत्र केवल पैदा हुए।
हे मा पुत्री की लालसा में तब करने लगी,
12 वर्ष पूर्ण होने पर मधुरा को पुत्री के रूप में हेमा को मिली।
माता पार्वती काम अधूरा को दिया गया शाप पूरा हुआ,
कूप में करती जीवनी मधुरा चिल्लाई तो उसे निकाला गया।
मधुरा का नामकरण मंदोदरी के रूप में हेमा ने किया,
उस समय लंका का राजा रावण लंका का राज करता था।
सुंदरी रूपवती मंदोदरी रावण से शादी करने का विचार किया,
रावण की सादी उसी प्रभु उपासिका मंदोदरी के साथ हुआ।
रावण को मंदोदरी सीता को वापस करने के लिए बार-बार समझाती,
जिद बड़ा किया रावण अपनी पट रानी पत्नी की एक नहीं मानता।
मंदोदरी के तन से निकले तीन पुत्र मेघनाथ अतिकाय और अक्षय,
एक एक कर तीनों पुत्र को राम - रावण युद्ध में मारा गया।
अंतकाल में जब रामचंद्र जी के हाथों से वह मारा गया,
उसके साव की पास मंदोदरी आकर बहुत रोया और चिल्लाया।
रावण के पास से उसने लंका और राम की सेना को भी देखा,
मंदोदरी ने प्रभु श्री राम जी के असली रूप में दर्शन किया।
जिस समय भगवान श्री, लंका का राजा विभीषण को बना दिया,
लंका में रहकर मंदोदरी एक बंद कमरे में रहने लगी।
कॉल समय बीतता गया मंदोदरी कमरे का कपाट बंद कर लिया,
कुछ समय पश्चात विभीषण जब लंका का राज काज संवारने लगे।
समय काल परिस्तिथि को देखकर मंदोदरी ने निर्णय लिया,
और विभीषण की पटरानी बनकर लंका की पुन: रानी बनी।
- सुख मंगल सिंह अवध निवासी
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