मनिका
बजा दुंदुभी और नंगाड़ा
विश्व विजित श्री राम राम।
ईश्वर मनन चिंतन में ज्ञान
इनसे जीवन श्रेष्ठ महान।।
कृपणता से दूर्गति अपार
कण-कण प्रसरित धवल धार।
तृण - तृण पर पवन पराग
चिंतक चिंतन कर कल्याण।।
धर्म प्रयोग पर कर विचार
विषय चिंतन से है महापाप।
होती दुर्गति उन जीवों की
दान दे मुकरे करे -पश्चाताप।।
मिले मुझे सम्मान दूजे उपेक्षा
मदान्ध होवे नहीं पूर्ण इच्छा।
निडर होकर ना करें कोई पाप
दुर्गति होगी और होगा ना श।।
पशु - पक्षी अथवा मानव हों
रक्षा सुरक्षा आश्रित का ठान।
शोषण करना विनाशक होता
मोक्ष नहीं मिलनेवाला मान।।
रूपया और भोग की चिंता
लोलुपता की बढ़ती खानी
विषमताओं को पालने वाला
समझ लो करता है मनमानी।।
पाप करने की जिसमें सो च
कलुसित हृदय व स्थित खोट
दूजे का जो करता अपमान
शापित होता हो अर्थ नाश।।
कहा मंगल प्यार - पयोधि
डूबते को संबल देता पोत।
प्रकट होता है नवल प्रभात
श्री राम राम मणि जय घोष।।
- सुखमंगल सिंह
--
Sukhmangal Singh
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY