Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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"मंत्र!"

 

"मंत्र!"

मंत्र गुरु/
गुरु मंत्र।
मंत्र सत्य/
सत्य मंत्र।
सत्य ब्रह्म/
ब्रह्म सत्य।
यग्य में हम/
सच्चे मंत्र कहें/
देने वाला जो,
सुख और/
 मंगल हो।
बचाने वाला हो/
पाप कर्मों से।
मंत्र!
वर्णनात्मक शब्दों/
के समूह होते।
जिसकी वाचा शक्ति/
बढी होती।
जो होती है/
सुसंगठित।
उसे उतनी ही/
मिलती सफलता।
करामात बात की/
पात्र प्रसिद्धि का।
बात से मानव पर/
अधिकार मिलता।
समृद्ध अपार/
शक्ति से होती।
वचन रचना/
ध्वनि मिलन साथ!
वहां होता/
मनिकांचन योग।
असंभव का/
संभव हो जाता।
भाव विचार मिलकर/
सृजित करता,
पराकाष्ठा की सफलता।
जिससे अन्तर्जगत /
और वाह्य जगत,
प्रभावित होता।
वाद्य यंत्र की/
संगत मिलन से!
तन्मय ता बढ़ती।
मधुर संगीत संग/
भाव मिलन!
तन्मय कर देता।
उसको कान/
आस्वादन करता।
साहचर्य से हृदय में/
आनंद की!
लहर उठती है।
सोचने समझने/
और विचार की!
उसमें बात न होती।
जो भाव हृदय में/
उत्पन्न ना होता है।
धीरे धीरे बढ़ता/
प्रगाढ़ हो जाता है।
मानव मन बुद्धि में/
कोमल ता/
मधुरता/
सरलता और
तीव्रता बढ़ जाती।
रागिनी की कल्पना/
राग में डुबकी लगाता!
विकास मिलता/
समसामयिक भाव!
उदित होता।
बंसी की धुन विरागी/
वीणा की ध्वनि उल्लासी।
 रण - वाद्य उत्तेजक/
मृदंग - मानस मोहक।
उन्माद हृदय में/
आलिंगन करता।
जब कभी भी/
कोकिल बोलता।

- सुख मंगल सिंह






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