नए लेखकों की नई चाल,
साहित्य को बनाया है मजाक का माल।
बुजुर्गों को पढ़ने में होता है जलन,
क्योंकि यह तो है साहित्य का बंटाधार का खेल।
इनकी रचनाएं हैं बिना सिर-पैर की,
बस शब्दों का जाल बिछाया हुआ है।
कोई अर्थ नहीं, कोई संदेश नहीं,
बस खालीपन का एक बड़ा सा मेला।
बुजुर्गों को लगता है कि यह तो है व्यंग्य,
साहित्य का मजाक उड़ाया जा रहा है।
लेकिन नए लेखक कहते हैं कि यह है कला,
और बुजुर्गों को लगता है यह तो है बकवास का खेला।
साहित्य का बंटाधार हो गया है,
नए लेखकों की इस नई चाल से।
बुजुर्गों को पढ़ने में होता है जलन,
क्योंकि यह तो है साहित्य का बंटाधार का खेल।
नए लेखकों की नई राहें,
साहित्य को बनाया है अपनी मरजी का माल।
बुजुर्गों को लगता है कि यह तो है व्यंग्य,
साहित्य का मजाक उड़ाया जा रहा है।
इनकी रचनाएं हैं बिना सिर-पैर की,
बस शब्दों का जाल बिछाया हुआ है।
कोई अर्थ नहीं, कोई संदेश नहीं,
बस खालीपन का एक बड़ा सा मेला।
बुजुर्गों को पढ़ने में होता है जलन,
क्योंकि यह तो है साहित्य का बंटाधार का खेल।
नए लेखक कहते हैं कि यह है कला,
लेकिन बुजुर्गों को लगता है यह तो है बकवास का खेला।
साहित्य का बंटाधार हो गया है,
नए लेखकों की इस नई चाल से।
बुजुर्गों को लगता है कि यह तो है व्यंग्य,
साहित्य का मजाक उड़ाया जा रहा है।
सुख मंगल सिंह
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