"निबंध के प्रकार और विचार"
निबंध के मूल स्वरूप में नया प्रश्न आता है,
विषय से विषयी कि उसमें प्रधानता बताता है।
निजी अनुभव की जिसमें प्रेरणा काम करती है,
अपना मत अपना दृष्टिकोण अभिज्ञान ता रहती है।।
साहित्य साधना में जब वैचारिक क्रांति बढ़ जाती है,
तब भावनात्मक शैलियां प्राय: गौण होने लगती है।
काव्य का स्रोत मंद और क्षीण में पड़ जाता है,
उपन्यास कहानी और नाटक अधिक लिखा जाता है।।
निबंध यह ऐसी सीमित गद्य रचना होती है,
जिसके अंदर कार्य कारण श्रृंखला और विचार होते हैं।
निबंध साहित्य में दो बातें नितांत प्रायोजन की होती हैं,
उन विचारों में व्यक्तित्व की स्पष्ट छाप होती है।।
रचनाकार की रचना में कहीं चिंतन प्रधान होते हैं,
और कभी कभी कहीं व्यक्तित्व महान होते हैं।
साहित्य में वस्तु निष्ठ प्रबंध पर भी ध्यान दिया जाता है,
नीजता और कलात्मक निबंध लेखन किया जाता है।।
जिस निबंध में चिंतन प्रधान हो कर उभरता है,
उस निबंध में व्यक्तित्व ही परोक्ष में पड़ जाता है।
और उस निबंध की प्रणाली वैज्ञानिक कहलाती है,
प्रेषणीयता तर्क और विवेचना शक्ति पर आधारित हो जाती है।।
तर्क और विवेचना जब वैज्ञानिक हो जाती है,
तब बुद्धि वाद की यही देन कहलाती है।
बुद्धि वालों ने जब रचना क्षेत्र में अपना पांव पसारा,
सामाजिक दृष्टि से वह काल संघर्ष में रहा।।
समस्या समाधान की चेष्टा में सुगमता लाने के लिए,
कहानी ,नाटक और उपन्यास रचा जाने लगा।
जब कहीं बुद्धि प्रधान होकर रचना रचती है,
तब भाव गौण और मस्तिष्क उभरता आता है।।
जिसने समझा समाज से साहित्य का घनिष्ठ संबंध है,
समाज के प्रति साहित्य का सुनिश्चित कर्तव्य है!
उसने साहित्य सेवा में तत्कालीन समस्याओं का,
हल निकालने का यथा सम्भव प्रयत्न किया।।
जिसने अपनी रचनाओं के संदेश को,
और तक उन्हें पहुंचाना चाहते थे।
श्रोता पाठक और दर्शक की बुद्धि प्रभावित करती,
उन्होंने इस साधन को अपने जीवन में अपनाया।।
बुद्धि प्रधान होने से वह का स्थान गौण हो जाता है,
और उसमें मन को रमाने की शक्ति नहीं आती है।
वह साहित्य की श्रेणी में भी नहीं आता है,
गणित दर्शन और विज्ञान की कोर्ट में चला जाता है।।
निबंध में मैं को बोलना ही पड़ता है,
व्यक्ति को उभर कर निकालना ही पड़ता है।
निबंध एक रसायन और सबसे निराला है,
उभरती सुगंध स्वाद प्रधान दिखाने वाला है।।
- सुख मंगल सिंह अवध निवासी
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY