पधार् यो राम
तपस्वी रूप नारायण विहरत
राहु करता रावण बन कामा।
निज गृह में रघुनाथ जाएंगे
लखन जननी संग अपने धाम।।
समय नियति गणना गणनायक
सुख मंगल बांचते गीत पुराना ।
मंगल छवि निरखन देव धायो
कलि बिचारी गयो रे सुर धामा।।
मिलि दल- बृंद सुर- नर मुनि
शिव श्रुति वेद उचारते हैं रामा।
गुरु ग्राम गआवत संत सुमंगला
तपस्वी रूप रे पधार् यो श्री राम।।
सहित रघुपति संग रआवरओ
पधार् यो अवध पुरी में है धामा।
तपस्वी रूप में नारायण विहरत
'सु मंगल' पधारे हैं सरयू में रामा।।
- सुख मंगल सिंह
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