" पंख विहीन मानव"
पक्षी पंख लिए उड़ती है,
पंख बिना मानव उड़ते हैं।
बूंद बूंद को ताल तरसते,
हंस हंस मानव भरते हैं।
चिड़िया चू - चू करती है,
ठूंस ठूंस मानव खाता है।
कलरव गान पक्षी करती है,
झंझट कर पर पत्ते लड़ते हैं।
सीमा पर आतंकी मारते हैं,
अहम बहम में पथिक डरते हैं।
आतंकी! आदमी होते हैं,
मर्सिडीज - कुत्ते चलते हैं ।
कौड़ी की तीन आदमी लगते,
अपने को जब नहीं समझते।
आपस में ठना - ठनी होती,
कर्ज की कहानी जुबान कहती।
सहज सिंगार में जवानी चली,
बुढ़ापे में होश ठिकाने लगी।
पंख विहीन बच्चे भी उड़ रहे,
दुनिया बड़ी है वह कह रहे।
पंख हीन महलऔर अटारी है,
खुशबू की फिल्म फुलवारी है।
राग त्याग लय प्रलय कारी है,
पंख बिन मानव अत्याचारी है।
- सुख मंगल सिंह अवध निवासी
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