"प्राचीन काल का काव्य इतिहास"
प्राचीन महाकाव्य में अयोध्या के राजवंश का वर्णन मिलता है। जिसमें इस वंश के संस्थापक से लेकर अंतिम राजा तक का वर्णन किया गया है। यह वर्णन इतिहास के लिए महत् रखने वाली है।
राजा के जीवन चरित्र दृश्य का वर्णन महाकवि की पूरी शक्ति के साथ या गया। इस आनंद में सच्ची कविताएं प्रकाशित की गई हैं। महाकवि कालिदास की उत्तम और बड़ी कल्पना और उसकी कविता की धोती है कोमल काका प्रभाव पाठकों के ऊपर रहता है।
ग्रंथ में सबसे आनंद और अदभुत कविता वहां पाई जाती है जहां की श्रीराम लंका से सीता को लेकर विमान प्रकाश में अयोध्या को लौट रहे हैं।
भारतवर्ष की नदी बन पर्वत समुद्र विमान के नीचे और राम अपनी कोमल प्रिय पत्नी को भिन्न-भिन्न स्थानों को दिखाते हुए अजोध्या की ओर अग्रसर होते हैं।
कवि की कल्पना शक्ति में उमा की प्रीति और उसके आनंद में विवाह वर्णन है। उमा ने हिमालय पर्वत की कन्या के रूप में जन्म लिया था इससे अधिक कोमल संतान इस संसार में कभी नहीं हुई।
' स्थावर जंगम सबको,
उनके होने से सुख हुआ अनंत।
शोभित हुई उसे निज गोदी में लेकर माता अत्यंत।
चंद्र कलावत निति दिन वह बढ़ने लगी रूप की खान,
चढ़ने लगी लुनाई तन में परम रम्य चांदनी सम्मान।।( महावीर प्रसाद द्विवेद)
इस कन्या का विवाह देवता लोग प्रताप शिव के साथ कराना चाहते थे। इस कथानक के पीछे कहा गया है कि इस विवाह से उत्पन्न होने वाला बालक देवताओं के लिए असुरों को जीतेगा।
हिमालय पर्वत पर शिव समाज में मगन हैं। यह निश्चय किया गया कि उस महान देवता की सेवा उमा करें।
शिव की उपासना में उमा इतनी झुके की उनके यह मैं लगे हुए मनोहर सुशोभित सुन्दर पुष्प गिर पड़े और रात्रि को जगमग ज्योति निकाल उठी।
शिव ने उमा की पूजा से प्रसन्न होकर वरदान दिया ।
' आवे तू ऐसा पति जिसने देखी नहीं अन्य नारी'
महावीर प्रसाद दिवेदी जी उसे दृश्य पर अपनी रचना की माध्यम से लिखा है-
राका पति को उदित देख कर क्षुद्ध हुए सलिलेश समान,
कुछ कुछ धैर्य हीन होकर के, संयम शील शम्भु भगवान।
लगे देखने निज नैनों से, सादर, साभिलाप, सर नेह,
गिरजा का बिंबाधर - धारी मुख्य मंडल शोभा का गेहा ।
खिले हुए कोमल कदंब के फूल तुल्य अंगों द्वारा,
आरती हुई प्रकाश उमा भी अपना मनोभाव सारा।
लज्जित नैनों से भ्रमिष्ट सी वहीं देखी हुई महीं,
अति सुकुमार चारु तरु आनन तिरछा करके खड़ी रही।
महा जितेंद्रिय थे; इस कारण, महादेव ने, तदनंतर,
अपने इस इंद्रिय क्षोभ का बल पूर्वक निवारण कर।
मनो विकार हुआ क्यों ? इसका हेतु जानने को सत्वर,
चारो ओर सघन कानन में प्रेरित किए लोचन वर।
नयन दाहिनी के कोने में मुट्ठी रखे हुए कठोर,
कंधे झुकाए हुए, बाम पद छोटा किए भूमि की ओर।
धनुष बनाए हुए चक्र सम, विशिख छोड़ते हुए विशाल,
मन सिज को इस विकट भेष में निन्नयन ने देखा उस काल ।
जिसका का विशेष बढ़ा था टपो भंग हो जाने से,
जिसका मुख दुर्दश था भृगुटि kutil चढ़ाने से।
उन हर के, तृतीय लोचन से तत्क्षण ही अति विकराला,
अक स्मात अग्नि स्फलिंग की निकली दीप्ति मांन ज्वाला।
हा हा ! प्रभॊ! क्रोध यह अपना करिए करिए करिए शांत,
इस प्रकार का विनय व्योम मैं जब तक सुर करें नितांत।
तब तक हर के दृग से निकले हुए हुताशन ने सविशेष,
मन मथ के मोहक शरीर को भस्म शेष कर दिया अशेष।।
एक तरफ कामदेव की स्त्री अपनी पति की मृत्यु होने पर विलाप करती है तो दूसरी तरफ उमा शोक - दुख के साथ
वन में जा कर तप किया।
कोमल कन्या की कठोर तपस्या आशा है और प्रभावशाली व्यक्तित्व को निखारने वाली है। ग्रीष्म ऋतु, प्रबल ताप, मैं जीवन जीवन व्यतीत करती है। शरद ऋतु में भी वह घनघोर परेशानी भी पड़ी रहती हैं। शीत ऋतु की हाड़ कंपाने वाली वायु भी व्रत से उन्हें विचलित नहीं कर पा ती।
युवा योगिनी कोमल ज्योति वाली युवती की कठोर तपस्या यह कारण उसने के लिए आने पर। उमा जी की सखियां कारण बताती है।
यह कन्या प्रेम शून्य देवता से प्रेम करे गी, जो अपनी शरीर में भश्म लगाए हुए घूमता है।फिर दिवेदी जी लिखते हैं
- ' उस द्विज ने इस भांति जब उलटा अभिप्राय सारा,
को प्रकाशित किया उमा ने कंपित अध रों द्वारा।
जिसे कोई नहीं जानता और कोई समझ नहीं सकता वह क्रोध और गहना के साथ उस स्थान से चली जाती जिसका वर्णन कुछ इस प्रकार है-
यह कहकर कि यहां से मैं ही उठ जाऊंगी, वह वाला,
उठी सबेग कुंचों से खिसका पावन पट
वलकल वाला।
अपना रुप प्रकट कर के, तब, परमानंदित हो, हंस कर,
पकड़ लिया कर उसको शंकर ने उस अवसर पर।
उसको देख, कंप युक्त धारण किए स्वेद के बूंद अनेक,
चलने के निमित्त ऊपर ही लिए हुए अपना पद एक।
शैल मार्ग में आ जाने से आकुल सरिता
तुल्य नितांत,
परबत सुता न चली, न ठहरी; हुई चित्र खींची सी भ्रांत।।
यह स्वयं शिव ही थे जिन्होंने प्रीति करना स्वीकार नहीं किया था परंतु उमा की कठोर तपस्या से संतुष्ट होकर पर्वत राज की कंया उमा स्नेह की नमृता के साथ प्रार्थना की।
( साभार पौराणिक कॉल से)
- सुख मंगल सिंह
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