Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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"रचता जाता है"

 

"रचता जाता है"


घुप अंधेरा में धीरे से,
पास वह आता है।
नजर नहीं आता पर,
एहसास करा जाता।।

बंद हृदय पट खोलता,
रच कर चला जाता।
आंखों में समुद्र बिखेरते,
नहाने मन खोजता।

अंधेरा से दूर भागते,
प्रकाश खोजते।
प्रकाश जहां भी आता
अंधेरा भगाता।।

जिसे हम हटाने का पूरा,
प्रयास करते हैं।
उसके करीब उतना ही,
हमेशा रहते हैं।।

आप कहते हम रचते हैं,
रचता दूसरा है।
जो दिल के करीब रहता
रचता जाता है।।

रचनाओं में निखार आता,
रचते जाता है।
विविध तरह रूप दिखाता,
प्रकृति स्वारूप है।।

जो पूछा यह दिखता है,
लोगों ने नहीं देखा।
देख कर अनदेखा करते,
स्वांग मात्र रचते।।

जो भी काम करते उसकी,
लेखा जोखा रखते।
उसपर ध्यान केंद्रित करते,
जो सब कुछ रचते।।

- सुख मंगल सिंह




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