Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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राह खड़े सौदागर

 

" राह खड़े सौदागर"


कठिन तपस्या पर प्रिये चलना पड़ता साथ,
दरवाजे बंद नहीं होते चलने वालों के पास।
थक चुका हारा नहीं चले जमाने के साथ, 
राह खड़े हैं दोनों दिखता है अपना ख्वाब।

काटेंगे मिल सुख दुख जो होगा तेरा साथ,
मेहनत का फल पारिश्रमिक वक्त के साथ होना बर्बाद।
जिम्मेदारी का बोझ धोते अपनों पर कर्ता था नाज़,
आओ गुफ्तगू करें बंद ना करना दरवाजा खास।

तपिस बहुत आसमान में दिखने लगी आसपास,
रिश्तो की पहचान जहां नातों ने अपनी बदली राह।
रंग बिरंगी बातों से खातिरदारी करते हैं शहनशाह,
आंखों के आंसू ठहरे आईने में लेकर आया राज।

बेरोजगारी महगाई भी बेटे कह रहे बाप बाप,
खाली अंधों के घर रिश्ते नाते पत्थर बिखरे आसपास।
खुलेआम खड़े राह सौदागर वे लेंगे  कीमत नाप,
निराधार सभी जब वादे  मिलकर चले साथ-साथ।।

- सुख मंगल सिंह

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