ऋषि पंचमी और महत्व
ऋषि पंचमी व्रत का पालन जिस जिसने किया
सुख सुविधाओं के साथ ही सौभाग्य जाग गया।
यह व्रत जीवन में दुर्गति को समाप्त करने वाला
पाप मुक्त करके यह सुंदर जीवन बनाने वाला ।
उत्तरा द्वारा इस व्रत को विधिवत किया गया था
गंध पुष्प धूप दीप नैवेद्य ऋषियों को चढ़ाया गया।
अश्वत्थामा का प्रहार उत्तरा पर प्रभावित नहीं किया
उत्तरा को राजा परीक्षित नमक उत्तराधिकारी मिला।
राजा परीक्षित अभिमन्यु उत्त्तरापुत्र रूप जन्म लिया
शास्त्र और लौकिक कथाओं ने व्रत का गुणगान किया।
इस व्रत को रखने वाले जन्म मरण से मुक्त हो जाते हैं
यह व्रत गणेश चतुर्थी के एक दिन पहले मनाई जाती है।
तीज के दो दिन बाद ऋषि पंचमीका व्रत मनाया आता है
मंदिर या घर की मंदिर को साफ सुथरा किया जाता है।
प्रातः गंगा में स्नान आदि करके पूजा कथा सुनी जाती है
शास्त्रों में भी गंगा स्नान का महत्व बड़ा बताया गया है।
चौकी पर लाल अथवा पीला कपड़ा बिछाया जाता है
उस चौकी पर सप्त ऋषियों को स्थापित किया जाता है।
उन्हें गंध धूप फूल फल नैवेद्य आदि भी चढ़ाया जाता है
पूजन के उपरांत उनकी आरती कर प्रसाद बांटा जाता है।
कलश स्थापना करके यथा बीच पूजन किया जाता है
ब्राह्मणों को भोजन दान आदि देकर विसर्जन करते हैं।
राजस्वला स्त्री को यह व्रत करना मना किया गया है
पाप से शुद्ध हेतु ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है।
सप्त ऋषियों में वशिष्ठ कश्यप विश्वामित्र अत्रि ऋषि
जमदग्नि गौतम और भारद्वाज सप्त ऋषि माने गये हैं।
पूजन का कार्यक्रम संपन्न होने के उपरांत मनुष्य को
गौ माता को अनिवार्य रूप से भोजन करना होता है।
ऋषि पंचमी का दिन सबसे शुभ दिन माना जाता है
भारतीय धर्म क्षेत्रअनुसार अलग तरीके से मनाते हैं।
ऋषि पंचमी व्रत करने वाले के भाग्य बदल जाते हैं
सुख सुविधाओं के साथ उनके सौभाग्य जग जाता है।।
-सुख मंगल सिंह
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