"रिश्तों पर बादल"
सत्य अहिंसा की बगिया में,
जाने कब से बादल छाए।
पर्वत - घाटी सबकुल ढूंढें,
गौतम बुद्ध वहां ना आए।
एहसास कराने बस्ती में,
ताल तलैया नहीं दिखाएं।
मय के सपने सारे झूठे,
बारिश का बूंदे समझाएं।
द्वारे पंथ दस्तक देने से,
हरे-भरे पत्ते कुम्हलाए।
हवाएं जहरीली ऐसी,
सपनों में राम नहीं भाएं।
गर्म हवा बहती आंधियां,
घर बाहर भीतर हत्याएं।
रीति रिवाज नीति प्रीति,
रिश्ते नाते भी नहीं सुहाए।
सत्य अहिंसा की बगिया में,
ज्ञानी कब के बादल छाए।
- सुख मंगल सिंह अवध निवासी
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