सारे दु:ख सहकर भी
यह कुछ नहीं कहते।
नीव में पड़े जो पत्थर
सबका भार खुद सहते।।
कंधे हैं बलवान उनके
भारी वजन उनपे पड़ते।
नीव में पडे़ जो पत्थर
वे कुछ नहीं कहते।।
आगे बढ़ने के सपने सबके
उन्हें यह भान नहीं होता।
बढ़ाने में किसका हाथ
इसका ज्ञान नहीं होता। ।
सारे श्रेय स्वयं ले लेते
उन्हें हनुमान नहीं होता।
करने वाला कोई और है
उनका ज्ञान नहीं होता। ।
मजदूर ने मेहनत की
हवेली वाले ने मजा ली।
उसने लगाया पेड़ पर
सजा कितना है सही।।
सभी भवन का भार
नीव वहीं उठा लेती है
कंधे पर कितना भी भोझ
हो, दु:ख नीव ही सहती।।
धैर्य के पीछे आलीशान
मकान खड़ा होता है।
नीव में पड़े पत्थर का
दर्शन कब कहां होता है।।
- सुख मंगल सिंह
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