"सत्यानंद?"
सत्य सदा इच्छाएं सजोए रहता
सभी उसको जहां में जान लें
असत्य हमेशा डर में जीता रहता
कोई उसको कहीं पहचान न ले
सत्य और झूठ को परखना होगा
जमाने का काम यार बोलना होता
झूठा व्यक्ति बीमार हो जाएगा
सत्य औषधि बनकर काम आएगा
काव्य में सौंदर्य बढ़ाने वाले ही
अनिवार्य रूप से विद्यमान रहते हैं
धर्म को ही गुण कहा जाता है
धार में धारण करने की क्रिया है
अग्नि पुराण 19 का बिगुल स्वीकारा
काव्यप्रकाश तीन गुणों में पुकारा
प्रसाद और माधुर्य भाव रहे द्वारे
काव्य संग्रह रहता गुण के ही सहारे
आचार्य विश्वनाथ के साहित्य दर्पण में
पंडितराज जगन्नाथ के रसगंगाधर में
जिन गुणों को उन्होंने उस में उतारा
इन्हीं तीनों गुणों को उन्होंने स्वीकारा।
सत्य को अपनाने से शांति मिलती
शांति से जीवन में सुखद अनुभूति
जीवन सुखद होने पर आनंद मिले
आनंद से मन हल्का महसूस करता।
- सुख मंगल सिंह
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