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शांति की एक बूंद

 

शांति की एक बूंद


शांति बूंद की गाथा स्वर्णिम
कुछ राज्य छुपाये बैठी
इतिहासओं में नहीं मिला
लहरें समंदर की क्यों चलती।

शांति बूंद हेतू नन्ही सी
सातो समंदर हलचल करते 
लहरों के झोंके ऐसे जैसे 
धरती और आकाश ऊचलती।

शांति बूदों की कथा निराली 
मरूस्थल में कुंज खिलाने वाली
व्याकुल हृदय जब भी हो जाता
बौने रूप में शांति बुंद शांति दिलाई। 

बूंद की महिमा जगजाहिर हैरान
इससे दुनिया का होता कल्याण
बंजर भूमि अथवा रेतीले खंडहर
शांति बूंद घस उगने वाली  होती। 

जब तक सागर बूंद मिलन ना होता
समंदर की लहरें हलचल करती चलतीं
तपसी रूप  बना कर युगों युगों तक 
लहर लहर लहराए सागर की लहरें। 

वे शुभ समय के भला कब आएंगे
मंगल दुनिया से हरि हर कह जाएं
पर्वत -खाड़ी नगर- शहर से होकर
ललहरें जाने क्या-क्या ब्यथा सुनाएँ। 

जीसे मानव दानव और देव ऋषि सुन
अपने मन  में ही वह चिंता दिख लाते
बूदों के खातीर मचलती  रही लहरें
और मिलन पूर्व में  शांति हो  जाती। 

माया रूपी फांस में फसकर सागर
उन शांति बूंदओं को ही भूल है जाता
अगली मिलन की आस लगाए बैठा
बरसों बरसों तपसी रूप बनाए चलता। 

उन्हें शुभक्षण के पाने में युगों युगों तक
सागर की लहरें हाहाकर मचाती रहती। 
शांति बूंद की वह है गाथा स्वर्णिम
कुछ राज छुपाये बैठी रहती है। 
-सुख मंगल सिंह



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