"शिक्षा - संस्कार"
आदरणीय रहा निवेदन भाषा का ज्ञान जरूरी है,
माध्यम चाहे जो भी चुनें पर शिक्षित सब को करना है!
विविध भाषा में भारत में ही बच्चों को पढ़ाएं जाते हैं,
लेकिन अपनी मातृभाषा पर ही लोग बाग इतराते हैं।
अपने देश की एक राष्ट्रभाषा हो इस पर बड़ी लड़ाई है,
कदम कदम पर बोली की ओर चढ़ती चली चढ़ाई है।
पढ़े लिखे और बने महान पर कठिन कराई है,
अपनी राष्ट्र की एक भाषा हो अंत झंझट आई है।
स्कूलों में संस्कार अपने हिसाब से पाला जाता है,
अभिभावक का धर्म-कर्म बच्चों पर ही आता है।
घर आने पर गर बच्चों को भारतीय संस्कार सिखाया जाता,
आगे बढ़कर वही बच्चे मातृभूमि को शीश नवाता।
माता पिता को देव रूप में वह बच्चा तब पाता,
बुढ़ापे में उन दोनों को वह कभी नहीं झुठला पाता।
भारत की संस्कृति दुनिया से यद्यपि प्यारी न्यारी है,
देवभूमि की अपनी संस्कृति सबसे दुलारी है।।
- सुख मंगल सिंह अवध निवासी
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