Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

"श्री रघुनाथ जी का राज्याभिषेक और राज्य संचालन"

 

"श्री रघुनाथ जी का राज्याभिषेक और राज्य संचालन"

जिसने नारी का किया अपहरण,
द्वापर - त्रेता में  बधा जाता था।
जाने क्यों कलयुग युग में वैसा,
लाल किले में उसे दुलारा जाता है।।

वन से होकर लौटे जब श्री राम,
अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ।
उनको वायु देव की प्रेरणा से,
देवराज इंद्र मुक्ताहार भेंट किया।।

श्री राम ने उस मुक्ता हार को,
सीता  के गले में डाल दिया।
विदेहनंदिनी सीता मुक्ता हार को, 
गले से निकाल के भेंट किया।।

उन्होंने पहले राम की तरफ देखा,
सोभाग्य शालिनी पति आज्ञा ले!
रतन्युक्त मणियों से विभूषित मुक्ता,
सद् गुणी हनुमान को भेंट में दिया।।

मुक्ता हार कपि राज के गले में,
सुशोभित होने लगा ऐसे मानो।
जैसे श्वेत बादलों की माला से,
पर्वत राज सुशोभित होते हों।।

श्री राम जी ने विभीषण सहित,
सभी श्रेष्ठ वानरों की सेना को।
मन वांछित वस्तुओं का दे उपहार,
यथा योग्य देकर सत्कार किया।।

 राम साथ में आई सारी सेना,
अपने अपने निज स्थान गई।
उदार हृदय श्री रघुनाथ जी ने,
समस्त राज्य में शासन करते हैं।।

तत्क्षण धर्म वत्सल श्री राम जी,
धर्मज्ञ लक्ष्मण से कहा!
चतुरंगिणि सेना के साथ लखन,
पूर्व राजाओं की भांति राज करो।।

राजाओं ने जिस धरा पे पालन किया,
वैसा ही तुम उसका पालन करना।
उसी भूमंडल राज्य पर तुम भी,
मेरे साथ प्रतिष्ठित हो जाओ!!

पिता - पितामह - प्रपितामह ने,
जिस राज्य को धारण किया।
उसी पर मेरे ही समान तुम भी,
युवराज - पद स्थित हो धारण करो।।

श्रीराम जी के तरह-२ समझाने पर,
सुमित्रानंदन, स्वीकार नहीं किये।
तब महात्मा श्री राम जी ने युवराज,
 पद पर भरत को आदेशित दिया।।

श्री रघुनाथ जी ने राज में सैकड़ों,
अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया।
राज योग पाकर श्री रघुनाथ जी ने,
11 सहस्त्र बरस धरा पे राज किया।।

श्री राम के राज्य शासन काल में,
धर्म पूर्वक - लालन पालन होता।
सर्पादी दुष्ट जंतुओं का भय न था,
कभी विधवा विलाप नहीं करती।।

चोर, लूट - लुटेरों का नाम न था,
राज में रोग की आशंका भी नहीं।
मनुष्य अनर्थ कार्य नहीं करता था,
 सबलोग प्रसन्नचित रहा करते थे।।

एक दूसरे को कोई कष्ट नहीं देते थे,
चारो तरफ राम राम की चर्चा होती।
सारा जगत राम में मस्त दिखता,
जय श्री राम जय श्री राम ही होता।।

 फूल - फल से वृक्ष सदा लदे रहते,
वायु मंद मंद गतिशील चलती थी।
चारो वर्ण के लोग लोभ मुक्त रहते,
अपने कर्मों से वे संतोष करते थे।।

- सुख मंगल सिंह अवध निवासी


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ