Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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स्मृतियों के झरोखे से

 

स्मृतियों के झरोखे से

स्मृतियों के झरोखे से एक दिन मेरे पास
एक आकृति सामने मेरे दिखलाई।

 
वह चेहरा जाना पहचाना सा लगा मुझे
सामान्य नहीं मानो इंद्रलोक से थी कोई खास!

चेहरे पर ताजगी थी और मुस्कुराहट भी
मुखड़े की लालीमा में भरा था उल्लास।

 
उसकी खूूबसुरती में लगा हुआ था चार चांद
वक्त ने उसे बनाया था चुन कर बेहिसाब।

हमने पूछा तुम्हारे आने का यहां क्या है प्रयोजन
जबाब दिया उसनें दुनिया को करना है रोशन।

 
- सुख मंगल सिंह

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